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________________ 220 दसवाँ अध्याय सूत्रार्थ - क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्ध, बोधितबुद्ध, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्पबहुत्व - इन द्वारा सिद्ध जीव विभाग करने योग्य हैं।।9।। मुक्त जीवों में भेद नहीं आत्मिक सुख, ज्ञान, दर्शन, वीर्यादि- अनंत गुणों की अपेक्षा मुक्त जीवों में कथंचित् भेद नुयोग प्रत्युत्पन्न नय । भूत नय (वर्तमान को ग्रहण (अतीत को ग्रहण करने वाला) करने वाला) 1, क्षेत्र | *अपने आत्मप्रदेश | * जन्म अपेक्षा - 15 कर्म भूमि | *आकाश प्रदेश | * अपहरण अपेक्षा - अढ़ाई द्वीप *सिद्ध क्षेत्र 2, काल 1 समय में * विदेह में - सर्व काल. * भरत - ऐरावत में -अवसर्पिणी के चौथे काल में -उत्सर्पिणी के तीसरे काल में उत्पन्न जीव ही सिद्ध होते हैं। हुण्डावसर्पिणी काल दोष की वजह से तीसरे काल में उत्पन्न जीव भी सिद्ध होते हैं। 3. गति | सिद्ध गति * निकट - मनुष्य गति * दूर - चारों गति से आकर बा लिंग(वेद) | -भाव | वेद रहित * तीनों वेद - द्रव्य तरूपतिना * पुरुष वेद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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