________________
218.
दसवाँ अध्याय र तदनन्तरमूवं गच्छत्यालोकान्तात्।।5।। सूत्रार्थ - तदनन्तर मुक्त जीव लोक के अन्त तक ऊपर जाता है।।5।।
पूर्वप्रयोगावसङ्गत्वाद् बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च।।6।। सूत्रार्थ - पूर्वप्रयोग से, संग का अभाव होने से, बन्धन के टूटने से और वैसा
. गमन करना स्वभाव होने से मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करता है।।6।।
आविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च।।7।। सूत्रार्थ - घुमाये हुए कुम्हार के चक्र के समान, लेप से मुक्त हुई तूमड़ी के
समान, एरण्ड के बीज के समान और अग्नि की शिखा के समान।।7।।
धर्मास्तिकायाभावात्।।8।। सूत्रार्थ- धर्मास्तिकाय का अभाव होने से मुक्त जीव लोकान्त से और ऊपर
नहीं जाता।।8।।
मोक्ष होने के बाद आत्मा
-
लोक के अंत तक ऊपर जाता है
क्यों
दृष्टांत 1. | पूर्व प्रयोग
घुमाया हुआ कुम्हार का चक्र | 2. संग का अभाव लेप से मुक्त हुई तूमड़ी. | 3. |बंधन का टूटना बीजकोश के बंधन से टूटा एरण्ड बीज 14. ऊर्ध्वगमन स्वभाव | अग्नि की शिखा
लोकाग्र के आगे गमन क्यों नहीं होता?
'धर्मास्तिकाय का अभाव होने से .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org