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________________ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org शरीर नाम गति जाति स्वरूप जीव समानता शरीर की भवांतर से इकट्ठे रचना हो में जाता किए जाते है भेद 4 विशेष the हैं 5 5 अंगोपांग बंधन संघात शरीर के शरीर के हाथ-पैर आदि अंग परमाणु परमाणु व नाकादि छिद्र छिद्र उपांग की सहित रहित रचना हो इकट्ठे एकता को बँधे प्राप्त हो 3 5 नरक एकेन्द्रिय औदारिक औदारिक भेदों के तिर्यंच द्वीन्द्रिय वैक्रियिक वैक्रियिक शरीर मनुष्य त्रीन्द्रिय आहारक आहारकवाले नाम देव चौइन्द्रिय तैजस भेद पंचेन्द्रिय कार्मण 5 एकेन्द्रिय के नहीं होते 14 पिण्ड प्रकृति संस्थान 5 5 शरीर वाले भेद शरीर की आकृति बने 6 आगे देखें संहनन स्पर्श हड्डियों शरीर में के बंधन स्पर्श रस गंध में हो हो हो विशेषता हो The 6 आगे देखें एकेन्द्रिय, देव, नारकी के नहीं होता 8 5 2 &a वर्ण हो 10 5 आनुपूर्वी विहायो विग्रह गति आकाश (द्रव्य) में पूर्व शरीर का में आकार बना रहे हो 1681 4 गमन 2 नरकगति प्रशस्त तिर्यंचगति अप्रशस्त मनुष्यगति देवगति
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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