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________________ 166 अष्टम अध्याय कषायों के उत्कृष्ट-जघन्य स्थान के दृष्टांत उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट । अजघन्य का जघन्य र क्रोध शिला भेद पृथिवी भेद | धूलि रेखा । जल रेखा | मान | शैल अस्थि । काष्ठ । बेंत बाँस की जड़ मेढ़े का सींग | गोमूत्र । किरमिची रंग चक्रमल | शरीर का मैल | हल्दी का रंग | माया खुरपा.' | लोभ । * क्रोध, मान, माया व लोभ में से एक समय में एक का ही उदय होता है। * अंतर्मुहूर्त में उदय नियम से बदल जाता है। * बंध चारों का प्रति समय होता है। नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि।।100 , सूत्रार्थ - नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु - ये चार आयु हैं।।10।। आयु तिथंचायु मनुष्यायु देवायु नरकायु नारकी तिर्यंच मनुष्य देव के शरीर में रोके रखे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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