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________________ अष्टम अध्याय 165 मोहनीय (281 / नोट - सभी में । ("जिसके उदय से" शुरू) 7 में लगाएँ दर्शन' मोहनीय (3) चरित्र मोहनीय (2) * सम्यक्त्व गुण का घात हो * चारित्र गुण का घात हो सम्यक्त्व मगत सम्यक्त्व मिथ्यात्व अकषाय कषाय 4 मिथ्यात्व *सम्यक्त्व का *अतत्त्व *मिश्रपरिणाम. वेदनीय(9) वेदनीय(16) मूल घातन श्रद्धान हो तत्त्व अतत्त्व (नोकषाय) हो पर दोष लगे दोनों श्रद्धान हो किंचित् कषाय हो हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा वेद *हँसी *देशादि में *देशादि में *इष्ट का *उद्वेग(चित्त * अपने दोष आए उत्सुकता उत्सुकता वियोग में घबराहट) छुपाने व दूसरे के हो न हो होने पर हो प्रकट करने एवं दुःख हो ग्लानि का भाव हो पुरुष नपुसंक - पुरुष से रमने का स्त्री से रमने का स्त्री-पुरुष दोनों ___ भाव इत्यादि भाव इत्यादि से रमने का भाव इत्यादि अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण| संज्वलन क्रोध मान । माया लोभ । *स्वरूपाचरण/] *देश चारित्र *सकल चारित्र भ्यथाख्यात चारित्र सम्यक्त्वाचरण. का घात हो *अनंत संसार | *किंचित् त्याग | *पूर्ण त्याग *जो संयम के (मिथ्यात्व) न होने दे न होने दे | साथ प्रज्वलित के साथ बँधे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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