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________________ सप्तम अध्याय 153 • अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम्।।38।। सूत्रार्थ - अनुग्रह (निज व पर के कल्याण) के लिए अपनी वस्तु का त्याग करना दान है।।38॥ दान (उपकार के लिए स्व की वस्तु का त्याग) स्व का उपकार पर का उपकार * लोभ वृत्ति कम होती है * जीवन यात्रा में मदद * आत्मा त्याग की तरफ झुकता है * धर्म साधना में सहायता * पुण्यबंध होता है । विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः।।39।। सूत्रार्थ - विधि, देय वस्तु, दाता और पात्र की विशेषता से उसकी विशेषता है।।39॥ दान के फल में विशेषता के कारण विधि विशेष द्रव्य विशेष दाता विशेष पात्रविशेष * नवधा भक्ति * देय वस्तु जिससे *दान देने वाला * दान लेने वाला में विशेषता — तप स्वाध्याय जो ईर्ष्या,खेद मोक्ष के कारणभूत .... आदि की वृद्धि हो रहित सात गुणों सम्यग्दर्शनादि गुणों से युक्त हो से युक्त हो उत्तम मध्यम जघन्य *मुनिराज *व्रती श्रावक *अव्रती सम्यग्दृष्टि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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