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________________ 150 . सप्तम अध्याय A NTALI कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि।।32।। सूत्रार्थ - कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगपरिभोगानर्थक्य - ये अनर्थदण्डविरतिव्रत के पाँच अतिचार हैं।।32।। अनर्थदण्डविरति कन्दर्प कौत्कुच्य मौखर्य । असमीक्ष्या- उपभोगपरिभोग धिकरण अनर्थक्य । रागभाव की कन्दर्प के साथ| धीठता पूर्वक प्रयोजन विचारे आवश्यकता से तीव्रतावश शारीरिक कुछ भी बक- बिना अधिक | अधिक वस्तु हास्य मिश्रित कुचेष्टा वास करना | प्रवृत्ति करना | का संग्रह करना असभ्य वचन करना बोलना शिक्षावत के अतिचार योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि।।33।। सूत्रार्थ - काययोगदुष्प्रणिधान, वचनयोगदुष्प्रणिधान, मनोयोगदुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृति का अनुपस्थान -ये सामायिक व्रत के पाँच अतिचार हैं।।33।। सामायिक व्रत दुष्प्रणिधान (सामायिक काल में । अन्यथा प्रवर्तन) काय वचन मन अनादर स्मृति अनुपस्थान * शरीर के *अशुद्ध *अर्थ में मन * उत्साह रहित * एकाग्रता के अंगोपांगादि उच्चारण, नहीं लगाना सामायिक अभाव में पाठ को निश्च- सही अर्थ आदि भूल जाना लता रहित का ज्ञान रखना न होना करना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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