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षष्ठ अध्याय
परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणोच्छादनोद्भावने च
नीचैर्गोत्रस्य।।25।। सूत्रार्थ - परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, सद्गुणों का उच्छादन और असद्गुणों का
उद्भावन - ये नीच गोत्र के आस्रव हैं।।25।।
तद्विपर्ययौ नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य।।26।। .. सूत्रार्थ - उनका विपर्यय अर्थात् परप्रशंसा, आत्मनिन्दा, सद्गुणों का उद्भावन
और असद्गुणों का उच्छादन तथा नम्रवृत्ति और अनुत्सेक - ये उच्च . गोत्र के आस्रव हैं।। 26।।
गोत्र
नीच गोत्र * पर की निन्दा * स्व की प्रशंसा *दूसरे के विद्यमान गुण
ढाँकना * अपने झूठे गुणों को प्रकट करना
उच्च गोत्र * पर प्रशंसा * स्व निन्दा *दूसरे के विद्यमान गुणों को प्रकट करना * अपने गुणों की चर्चा नहीं करना *नम्रवृत्ति- अपने से गुणों में अधिक
की विनय
* अनुत्सेक - अभिमान न होना
किस जीव के कौन-से गोत्र का उदय होता है।
नीच गोत्र
उच्च गोत्र
दोनों में से कोई भी एक
* देव
* सब नारकी * सब तिर्यंच ___*भोगभूमिया मनुष्य * अपर्याप्त मनुष्य
* पर्याप्त कर्मभूमिया मनुष्य
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