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________________ षष्ठ अध्याय 117 25 क्रियाए। 5 विभिन्न क्रियाएँ। सम्यक्त्व मिथ्यात्व प्रयोग समादान ईर्यापथ (सम्यक्त्व (मिथ्यात्व पुष्ट (शरीरादि (संयमी का (संयम बढ़ाने बढ़ाने वाली) करने वाली) द्वारा असंयम वाली) गमनादि के सन्मुख प्रवृत्ति) होना) 5 हिंसा भाव की मुख्यतारूप क्रियाएँ प्रादोषिकी कायिकी अधिकरणिकी परितापकी प्राणातिपातिकी (क्रोध के (क्रोध के (हिंसा के साधन (दूसरों को (दूसरे के 10 आवेश में आवेश में ग्रहण करना) दुख उत्पत्ति प्राणों का द्वेषबुद्धि करना) काय चेष्टा के कारणरूप वियोग करना) करना) क्रिया) 5 इन्द्रियों के भोग बढ़ाने सम्बन्धी क्रियाएँ। वर्शन स्पर्शन (सुन्दर रूप (स्पर्श करने देखने का का भाव) अभिप्राय) प्रात्ययिकी समन्तानुपात अनाभोग (भोगों की (जीवों के रहने (बिना देखे नई-नई के स्थान पर स्थान पर सामग्री जुटाना) मल-मूत्र उठना, त्यागना) बैठना आदि) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004253
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuja Prakash Chhabda
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2010
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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