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पञ्चम अध्याय
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ।। 41 ।। सूत्रार्थ जो निरन्तर द्रव्य में रहत हैं और (अन्य) गुणरहित हैं, वे गुण हैं ।। 41 ॥
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गुण का लक्षण
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सदा द्रव्य के आश्रय से रहे
अन्य गुणों से रहित हो
तद्भावः परिणामः ।। 42।। सूत्रार्थ - उसका होना अर्थात् प्रति समय बदलते रहना परिणाम है ।।42।।
परिणाम (भाव)
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अनादि
( प्रवाह अपेक्षा)
सादि
(प्रति समय नया-नया)
धर्मादि 4 द्रव्य - दोनों परिणाम आगम से जाने जाते हैं। जीव और पुद्गल - दोनों परिणाम कथंचित् प्रत्यक्षगम्य हैं।
क
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