SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रास्ताविक : जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र [ २७ सैद्धान्तिक विषयों का प्रतिपादन करनेवाले अध्ययन तथा गद्यभाग कुछ बाद के प्रतीत होते हैं। शेष भाग अपेक्षाकृत अधिक प्राचीन है। इनमें भी समय-समय पर संशोधन एवं परिवर्तन होते रहे हैं। आगमों के संकलन के लिए श्वेताम्बर-परम्परा के . अनुसार . होनेवाली तीन वाचनाओं (सम्मेलनों)' से इस बात की पुष्टि हो जाती है। - भगवान् महावीर के निर्वाण (ई० पू० ५२७) के लगभग १६० वर्ष बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में मगध में भयंकर अकाल (दुर्भिक्ष) पड़ा जिससे बहत से साधु भद्रबाह के नेतृत्व में समुद्र तट की ओर चले गये । जो बाकी बचे वे स्थूलभद्र (स्वर्गगमन वी०नि० सं० २१६) के साथ वहीं रहे। अकाल के दूर होने पर स्थूलभद्र के नेतृत्व में पाटलिपुत्र में जैन-साधुओं का एक सम्मेलन हुआ और मौखिक चले आ रहे अंग-ग्रन्थों का संकलन किया गया। बारहवां अंग दृष्टिवाद भद्रबाहु को छोड़कर किसी को याद नहीं था। अतः उसका बाद में संकलन नहीं हो सका और शनैः-शनैः वह लुप्त हो गया। इसके बाद (महावीर-निर्वाण के ८२७ या ८४० वर्ष बाद, ई० सन् ३००-३१३) आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में दूसरा सम्मेलन मथुरा में बुलाया गया । इस सम्मेलन में जिसे जो याद था उसे संकलित कर लिया गया। करीब इसी समय नागार्जुनसूरि के नेतृत्व में वलभी (सौराष्ट्र) में एक दूसरा सम्मेलन हुआ। इसके बाद दोनों नेता आपस में मिल नहीं सके जिससे पाठभेद बना रह गया। महावीर-निर्वाण के लगभग ९८०-६६३ वर्ष पश्चात वलभी में ही देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में एक तीसरा सम्मेलन हुआ। .१. प्रा० सा० इ०, पृ० ३६-३६. बौद्ध साहित्य में भी इसी प्रकार की तीन संगीतियों का उल्लेख मिलता है जिनमें ग्रन्थों को सुदृढ़ किया गया था। अन्तिम बौद्ध-संगीति बुद्धपरिनिर्वाण के २३६ वर्ष बाद अशोक के राज्यकाल में हुई थी। जनों की अंतिम वाचना बहुत बाद (वी० नि०६८०-६६३) में हुई। जनों के सम्मेलन की तरह बौद्ध-संगीतियों का कारण दुभिक्ष नहीं था। -देखिए-बुद्धचर्या, पृ० ५४८-५८०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy