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________________ परिशिष्ट ४ । देश तथा नगर [ ४६६ कौशाम्बी : यह जैनों का प्रमुख केन्द्र था। उत्तराध्ययन में इसे 'पुराणपुरभेदिनी' कहा गया है । 'अनाथी' मुनि के पिता 'प्रभूतधनसञ्चय' यहीं पर रहते थे। उत्तर प्रदेश में इलाहावाद-कानपुर रेलवे लाइन पर 'भरवारी' स्टेशन से २०-२५ मील दूर ( प्रयाग से ३२ मील दूर ) 'फफोसा' गांव है। यहां से ४ मील दूर 'कुशंवा' ( कोसम ) गांव है। इससे कौशाम्बी की पहिचान की जाती है। इसे छठे तीर्थङ्कर पद्मप्रभ का जन्मस्थान भी माना जाता है। कनिंघम ने इसे बौद्ध और ब्राह्मणों का केन्द्र माना है। यह 'वत्स' जनपद की राजधानी थी। गान्धार: यहां के राजा का नाम था 'नग्गति'। इसमें पश्चिमी पंजाब और पूर्वी अफगानिस्तान सम्मिलित था। स्वात से झेलम नदी के मध्य का प्रदेश इस जनपद में आता था। महाभारत की नामानक्रमणिका में इसकी सीमा सिन्ध और कुनर नदी से लेकर काबुल नदी तक तथा पेशावर व मुल्तान प्रदेश तक बतलाई है।५ जैन साहित्य में इसकी राजधानी 'पुण्ड्रवर्धन' (पूर्वीय बंगाल) बतलाई गई है और बौद्ध साहित्य में 'तक्षशिला'। आचार्य तुलसी ने लिखा है कि उत्तरापथ का यह प्रथम जनपद था। चम्पा : यह बनिज व्यापार का बड़ा केन्द्र था। यहां के व्यापारी मिथिला, पिहण्ड आदि स्थानों पर व्यापारार्थ जाते थे। पालित वणिक और उसका पुत्र समुद्रपाल यहीं रहते थे। यह अंग जनपद ( जिला भागलपुर ) की राजधानी थी। इसकी पहचान बिहार १. उ० २०.१८. २. Ancient Geography of India, p. 330. .३. जै० भा० स०, पृ० ४७५. ४. उ० १८.४५. ५. महा० ना०, पृ० १०१. ६. उ० समी०, पृ० ३७८. ७. उ० २१.१,५. ८. जै० भा० स०, पृ० ४६५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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