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४६६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन कम्बोज :'
उत्तराध्ययन में कम्बोज ( काम्बोज ) देश के 'कन्थक' घोड़े से 'बहुश्रुत' की प्रशंसा की गई है। इससे प्रतीत होता है कि यहाँ के घोड़े उस समय प्रसिद्ध रहे हैं। आचार्य बुद्धघोष ने इसे 'घोड़ों का घर' कहा है। महाभारत में भी इसी तरह का उल्लेख मिलता है। यह अफगानिस्तान के आस-पास (कश्मीर में) हिमालय और सिन्धु नदी के बीच ( गान्धार के पश्चिम प्रदेश ) का जनपदं था। इस तरह यह पश्चिमोत्तर भारतखण्ड का एक जनपद रहा है। बौद्ध साहित्य के सोलह महाजनपदों में इसका उल्लेख है तथा इसकी राजधानी द्वारका बतलाई गई है परन्तु जैन-सूत्रों में उल्लिखित सोलह जनपदों में इसका उल्लेख नहीं है। कलिङ्ग:
करकण्डू यहां का राजा था। वर्तमान उड़ीसा का दक्षिणी भाग कलिङ्ग कहा गया है। जैन ' ग्रन्थों में उल्लिखित
१. उ०११.१६. २. सुमंगलविलासिनी, भाग १, पृ० १२४. ३. देखिए-महाभारत नामानुक्रमणिका, पृ० ६३, ४, बौद्ध साहित्य में उल्लिखित सोलह महाजनपद ये हैं : १. अंग, २ मगध,
३. कासी, ४. कोसल, ५. वज्जि, ६. मल्ल, ७. चेति, ८. वंस, ६. कुरु, १०. पंचाल, ११. मच्छ, १२. सूरसेन, १३. अस्सक, १४. अवंति, १५. गंधार और १६. कम्बोज । जैन-सूत्रों में उल्लिखित सोलह जनपद ये हैं : १. मगध, २. अंग, ३. बंग, ४. मलय, ५. मालवय, ६. अच्छ, ७. वच्छ, ८. कोच्छ, ६. पाढ, १०. लाढ, ११. वज्जि, १२. मोलि ( मल्ल ), १३. कासी, १४. कोसल, १५. अवाह, १६. संभुत्तर ( सुह्मोत्तर )।
देखिए-जै० भा० स०, पृ० ४६०, फुटनोट १; बुद्धिस्ट इण्डिया,
पृ० १७, २१. ५. उ० १८.४५.
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