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________________ परिशिष्ट ३ : साध्वाचार के कुछ अन्य ज्ञातव्य तथ्य [४६३ . सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन' -यहाँ सूत्रकृताङ्ग के दोनों भागों के २३ अध्ययन अभीष्ट हैं। इनमें गाथाषोडशक-सम्बन्धी सोलह अध्ययन भी सम्मिलित हैं। ___ दशादि उद्देश -दशाश्रुतस्कन्ध के १० उद्देश, बृहत्कल्प के ६ उद्देश और व्यवहारसूत्र के १० उद्देश यहाँ 'दशादि' शब्द से कहे गए हैं। प्रकल्प - साध के आचार का प्रतिपादक आचाराङ्गसूत्र यहाँ 'प्रकल्प' शब्द से कहा गया है। इतना विशेष है कि यहां आचाराङ्गसूत्र में 'निशीथ' को भी मिला लिया गया है जो कि आचाराङ्ग के परिशिष्ट (चूलिका) के रूप में लिखा गया है। इसका कारण यह है कि 'प्रकल्प' शब्द का उल्लेख २८ संख्या के क्रम में आया है जबकि आचाराङ्ग में कुल २५ ही अध्ययन हैं । अतः इस संख्या की पूर्ति के लिए निशीथसूत्र को भी ले लिया गया है । यद्यपि यह निशीथसूत्र बहुत विशाल है और कई भागों में विभक्त है फिर भी सम्पूर्ण निशीथ को तीन भागों में विभक्त करके २८ की संख्या पूर्ण की गई है। समवायाङ्गसूत्र में 'आचार-प्रकल्प' शब्द आया है और वहाँ उसके अन्य प्रकार से भेद किए गए हैं। - इन सभी ग्रन्थों में साधु के ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सम्बन्धित धार्मिक एवं दार्शनिक विषयों का ही विशेषरूप से वर्णन किया गया है। दशाश्रुतस्कन्ध आदि छेदसूत्रों में मुख्यरूप से आचारादि १. उ० ३१.१६; समवा०, समवाय २३. २. उ० ३१.१७; समवा०, समवाय २६. ३. 'प्रकृष्टः कल्पो' यतिव्यवहारो यत्र स प्रकल्पः, स चेहाचाराङ्गमेव शास्त्रपरिज्ञाद्यष्टाविंशत्यध्ययनात्मकम् । -उ० ३१.१८ भावविजय-टीका आचार प्रथमाङ्ग तस्य प्रकल्प: अध्ययनविशेष निशीथमित्यपराभिधानम् । आचारस्य वा साध्वाचारस्य ज्ञानादिविषयस्य प्रकल्पो व्यवस्थापनमिति आचारप्रकल्पः । -उद्धृत, श्रमणसूत्र, पृ० १८६. ४. समवा०,समवाय २८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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