SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन अन्धकवृष्णि :' ये समुद्रविजय, वसुदेव, अरिष्टनेमि, कृष्ण आदि के पूर्वज हैं । इन्हीं के नाम से आगे इनके कुल का नाम अन्धकवृष्णि पड़ा। अरिष्टनेमि :२ ये बाईसवें तीर्थङ्कर हैं। ये शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय की पत्नी शिवा के पुत्र थे। ये कृष्ण वर्ण के थे। महापुरुषोचित १००८ लक्षणों से युक्त थे। इनके शरीर की अस्थियों आदि का गठन एक विशेष प्रकार का था। जब ये राजीमती के साथ विवाह करने के लिए बारात के साथ जा रहे थे तभी वैराग्य हो जाने से जिन-दीक्षा ले ली। इन्हें वृष्णिपुंगव ( यादववंशी राजाओं में प्रधान ) कहा गया है। इषुकार : यह इषुकार नगर ( कुरु जनपद ) का राजा था। इसने अपनी पत्नी कमलावती के द्वारा प्रबोधित किए जाने पर जिनदीक्षा ली और कर्मों को नष्ट करके मोक्ष प्राप्त किया। बृहद्वृत्ति में इसका मौलिक नाम 'सीमंधर' आया है तथा बौद्ध-ग्रन्थों में 'एषुकारी' नाम से इसका उल्लेख हुआ है। यह देवों का शासक है। इसे शक्र और पुरन्दर के नाम से भी कहा गया है। इसने ब्राह्मण के वेश में राजा नमि की दीक्षा के अवसर पर राजा के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए उनके संयम की दृढ़ता की परीक्षार्थ कुछ प्रश्न पूछे । पश्चात् नमि के सयुक्तिक उत्तरों को सुनकर उनकी स्तुति की। १. देखिए - उ० समी० अध्ययन, पृ० ३६६. २. देखिए-राजीमती आख्यान, परि० १. ३. उ० १४. ३, ४८. ४. उ० बृहद्वत्ति, पत्र ३६४; हस्तिपाल जातक, ५०६. ५. उ० अध्ययन ६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy