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परिशिष्ट २ विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय
ग्रन्थ में उल्लिखित निम्नोक्त सभी व्यक्ति ऐतिहासिक तो नहीं हैं फिर भी विषय को रोचक एवं प्रभावोत्पादक बनाने के लिए संवाद एवं कथाओं के रूप में इन्हें जोड़ा गया है। जैसे : अनाथी मुनि :
प्रभूतधनसंचय इनके पिता थे। ये जीवन की प्रथम अवस्था में ही चक्षरोग से पीड़ित हो गये थे। अनेक प्रयत्न करने पर भी जब रोग ठीक न हुआ तो जैन-श्रमण बन गए। इनका राजा श्रेणिक के साथ वार्तालाप हुआ जिसमें इन्होंने धर्महीन को 'अनाथ'
और धार्मिक आचरणवाले को 'सनाथ' बतलाया। इनका रूप और तेज आश्चर्यकारी था। इन्होंने अनाथता का वर्णन किया। अतः ये 'अनाथी मुनि' के नाम से कहे गए । : अर ( अरहनाथ ) :२
ये सातवें चक्रवर्ती राजा और अठारहवें तीर्थङ्कर हुए। १. देखिए-परि० १, पृ० ४५.९. २. उ० १८.४०. . ३. बारह चक्रवर्ती राजा इस प्रकार हैं : १. भरत, २. सगर, ३.
मघवा, ४. सनत्कुमार, ५. शान्ति, ६. कुंथु, ७. अरह, ८. सुभूम,
६. महापद्म, १०. हरिषेण, ११. जय और १२. ब्रह्मदत्त । ४. जैनधर्म में चौबीस तीर्थङ्कर इस प्रकार हैं : १. ऋषभ, २. अजित,
३. संभव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ६. पुष्पदन्त (सुविधि), १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर ( अरह), १६. मल्लि, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. नेमि, २३. पार्श्व और २४. महावीर ।
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