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४३६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन इस सब विवेचन से इतना तो निश्चित है कि उस समय समाज चार वर्णों तथा चार आश्रमों में विभक्त था, जाति-प्रथा का जोर था, ब्राह्मणों का आधिपत्य था, वैदिक यज्ञों का बोलबाला था, जनश्रमणों का जीवन कष्टप्रद होने पर भी उनका प्रसार हो रहा था, समुद्रपार जहाजों से व्यापार होता था, राजा लोग राज्य के विस्तार के लिए सतत प्रयत्नशील रहते थे जिससे अक्सर युद्ध हुआ करते थे, शूद्रों की स्थिति दयनीय थी, नारी विकास की ओर कदम उठा रही थी, समाज भोग-विलास की ओर गतिशील था, धर्म के प्रति जनता की अभिरुचि कम थी तथा धार्मिक एवं दार्शनिक मत-मतान्तर काफी थे।
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