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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४३३ बारात के साथ वर कन्या के घर जाता था परन्तु हरेक विवाहसम्बन्ध में वर बारात के साथ कन्या के घर नहीं जाता था। इसीलिए राजीमती के पिता उग्रसेन केशव से बारात लेकर आने को कहते हैं। वर जब बारात के साथ प्रस्थान करता था तो उसे नाना प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित किया जाता था तथा देश व कुल की परम्परानुसार कौतुक-मंगल आदि कार्य भी किए जाते थे। कुछ कन्याएँ राजाओं को भेंटरूप में भी दे दी जाती थीं। व्यापार के लिए विदेश गए हुए वैश्य पुत्र कभी-कभी विदेश में ही विवाह कर लेते थे और कुछ दिन घरजमाई बनकर अपने घर वापिस आ जाते थे। उस समय बहु-विवाह भी होते थे। कभीकभी पिता पुत्र के लिए कहीं से सुन्दर कन्या भी ले आते थे। ऐसे सम्बन्ध शायद खरीदकर लाई गई अथवा भेंटरूप में दी गई अथवा बलात् छीनकर लाई गई कन्याओं के साथ होते रहे होंगे। जैसा कि अन्य तत्कालीन जैन आगम-ग्रन्थों में धन देकर कन्याओं को खरीदने के उल्लेख मिलते हैं।' कभी-कभी विवाह-सम्बन्ध देव की प्रेरणा आदि से भी कर दिए जाते रहे होंगे। इस तरह स्त्री और पुरुष को एक बन्धन में बांधने (विवाह ) के लिए कोई एक निश्चित रिवाज नहीं था अपितु यथासुविधा ये सम्बन्ध हो जाया करते थे। __ परिवार में किसी के मर जाने पर उसका दाह-संस्कार करने का रिवाज था । दाह-संस्कार प्रायः पुत्र या पिता करता था। इसके बाद कुछ दिन शोक करके उसके सभी सम्बन्धीजन अपने-अपने कार्यों में यथास्थान लग जाते थे। . जीविका निर्वाह तथा युद्ध आदि में उपयोग के लिए पशुपक्षियों का पालन किया जाता था। पशुओं में हाथी, घोड़ा, गाय, बकरा आदि प्रमुख थे। खान-पान में घी, दूध, फल, अन्न, मांस-मदिरा आदि का आम-रिवाज था। बकरे का मांस बड़े चाव से खाया जाता था। अतः 'एलय' अध्ययन में 'कर्कर' शब्द करते हुए बकरे के मांस-भक्षण का दृष्टान्त दिया गया है। १. जै० भा० स०, पृ० २५५.
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