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________________ प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४१६ नावों या जल-पोतों का उपयोग किया जाता था। कभी-कभी व्यापार में इन्हें घाटा भी हो जाता था और कभी-कभी मलधन ही निकल पाता था।२ वस्तु को खरीदने के लिए सिक्कों का भी प्रयोग होता था। ग्रन्थ में सिक्का के अर्थ में 'काकिणी' का उल्लेख मिलता है जो उस समय का सबसे छोटा सिक्का था। तोलने के लिए मापक-बाट एवं तराज का प्रयोग होता था। व्यापार के लिए समुद्र पार जाते समय व्यापारियों को बड़ा भय रहता था क्योंकि समुद्र में ज्वार-भाटे आदि के आने पर रक्षा के समुचित साधन नहीं थे। समद्रयात्रा से वापिस आ जाना बड़ी कुशलता समझी जाती थी। अतः पालित वणिक् के विदेश से पोत द्वारा घर आ जाने पर 'कुशलतापूर्वक आ गए' ऐसा कहा गया है। विदेश में कभी-कभी वणिक् शादी भी कर लेते थे। पश्चात् कुछ दिन वहां रहकर पत्नी के साथ घर आ जाते थे। समुद्रयात्रा में काफी समय लगने के कारण कभी-कभी समद्रयात्रा करते समय जल-पोत में गर्भवती स्त्रियां प्रसव भी कर देती थीं।६ समद्रयात्रा या अन्य किसी लम्बी यात्रा पर जाते समय पाथेय ( कलेवा ) ले जाया १. वही; उ० २३.७०-७३. २. एगोत्थ लहई लाभं एगो मूलेण आगओ ॥ ........ ... एगो मूलंपि हारित्ता आगओ तत्थ वाणिओ। -उ० ७.१४-१५. ३. जहा कागिणिए हेउं सहस्सं हारए नरो। -उ० ७.११. ४. जहा तुलाए तोलेउ। -उ० १६.४२. दोमास कयं कज्ज। -उ०८.१७. ५. खेमेण आगए चंपं । -उ०२१.५. ६. अह पालियस्स घरणी समुद्दम्मि पसवइ । -उ० २१.४. तथा देखिए-पृ० ३६७, पा० टि० १. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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