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________________ १. अग्नि प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४०६ द्रव्ययज्ञ भावयज्ञ : १. तप (ज्योतिरूप-क्योंकि अग्नि की तरह तप में कर्ममल भस्म करने की शक्ति है) २. अग्निकुंड ( अग्नि प्रज्वलित २. जीवात्मा __ करने का स्थान ) ३. स वा ( जिससे घृतादि की ३. त्रिविध योग (क्योंकि आहुति आहुति दी जाती है ) किए जाने वाले सभी शुभाशुभ कर्मेन्धनों का आगमन योग के द्वारा ही होता है। ४. करीषाङ ( जिससे अग्नि ४. शरीर ( क्योंकि तपाग्नि इसी प्रज्वलित की जाती है। से प्रदीप्त होती है ) जैसे : घत आदि) ५. समिधा (शमी, पलाश आदि ५. शुभाशुभ कर्म (क्योंकि की लकड़ियाँ ) - ये ही तपाग्नि में लकड़ी की तरह भस्म किए जाते हैं ) ६. शान्तिपाठ ( कष्टों को दूर ६. संयम-व्यापार (क्योंकि इससे करने के लिए) जीवों को शान्ति मिलती है) ७. हवन (जिससे अग्नि प्रसन्न हो) ७. चारित्र ८. जलाशय ( स्नान के लिए) ८. अहिंसा धर्म .. ६. शान्तितीर्थ ( सोपान ) ब्रह्मचर्य तथा शान्ति १०. जल ( जिससे कर्म र ज १०. कलुषभाव से रहित शुभदूर हो ) लेश्यावाली आत्मा ( क्योंकि ऐसे तीर्थजल में स्नान करने से कर्म रज दूर हो जाती है ) ११. निर्मलता ( स्नान के बाद ११. अन्तरङ्गात्मा निर्मल और प्राप्त होने वाली शुद्धि ) ताजी हो जाती है। १२. गौदान ( यज्ञ के अन्त में १२. संयम-पालन ( यह सहस्रों दिया जानेवाला दान ) गौदानों से श्रेष्ठ है ) इस तरह इस भावयज्ञ में जीवात्मारूपी अग्निकुण्ड में शरीररूपी करीषाङ्ग से तपरूपी अग्नि को प्रज्वलित करके कर्मरूपी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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