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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति
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चिकित्साचार्य ( रोगों का इलाज करने वाले ), ' नाविक ( नाव चलाने वाले) र सवार (घोड़े की सवारी करने वाले), 3 कर्षक ( खेती करनेवाले ) ४ तथा नाना प्रकार के शिल्पी ' आदि । कुछ वर्णसंकर जातियाँ भी थीं। वर्णसंकर जातियों में बुक्कुस और श्वपाक जातियों का उल्लेख मिलता है ।
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इन जातियों के अतिरिक्त गोत्रों में काश्यप गोतम, गग तथा वसिष्ठ गोत्र का; " कुलों में अगन्धन, भोग, गन्धन तथा प्रान्त
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कुलों (सामान्य गरीबों के कुल - निम्न कुल ) का और वंशों इक्ष्वाकु तथा यादववंश का उल्लेख मिलता है ।
इस तरह उस समय सामाजिक संगठन वर्ण, जाति, गोत्र, कुल और वंश के आधार से कई भागों में विभक्त था ।
आश्रम व्यवस्था :
वर्ण और जाति पर आधारित समाज में सांस्कृतिक संगठन की दृष्टि से आश्रम - व्यवस्था भी थी। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के विकासक्रम के अनुसार इन्हें चार भागों में विभक्त किया गया
१. विज्जामंततिगिच्छगा ।
- उ० २०.२२.
२. जीवो वच्चइ नाविओ ।
-उ० २३.७३.
३. हयं भद्द व वाहए ।
—उ० १.३७.
४. सु बीयाइ ववंति कासगा ।
-उ०१२.१२.
५. माहणभोइय विविहाय सिप्पिणों ।
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- उ० १५.६.
६. देखिए - पृ० ३६८, पा०टि० २; उ० ३.४; जै० भा०स०, पृ० २२३.
७. उ० अध्ययन २६ प्रारम्भिक गद्य;
१८.२२; २२.५; २७.१; १४.२६.
८. उ० २२.४२, ४४; १५.६,१३. ६. उ० १८.३६; २२.२७.
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