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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति
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द्वारा रूपवती कन्या के देने पर उसे लेकर अपने देश आ जाता है।' ये ७२ कलाओं का तथा नीतिशास्त्र आदि का भी अध्ययन करते थे।' ग्रन्थ में वणिक् को 'श्रावक' भी कहा गया है। इससे उनके जैन गृहस्थ होने का प्रमाण मिलता है। कुछ वणिक् जैन दीक्षा भी ले लेते थे। इस तरह इनका मुख्य कार्य व्यापार करना था तथा धनादि से सम्पन्न होने के कारण ये 'श्रेष्ठि' कहलाते थे। ग्रन्थ में 'बहुश्रुत' की प्रशंसा में नाना प्रकार के धन-धान्यादि से परिपूर्ण सामाजिकों ( धान्यपति ) के सुरक्षित कोष्ठागार की उपमा दी गई है।" इससे प्रतीत होता है कि ये लोग धनादि से सम्पन्न तो होते ही थे साथ ही समाज में विशिष्ट स्थान रखने से 'सामाजिक' भी कहलाते थे। अनाथी मुनि के पिता का नाम अत्यधिक धनसंचय करने के कारण 'प्रभूतधनसंचय' पड़ा था। ये अंगनाओं के साथ देवों के तुल्य सुखों का भोग भी किया करते थे।
शूद्र-इनकी स्थिति बहुत ही सोचनीय थी। इनके साथ दासों की तरह व्यवहार किया जाता था। ये निम्न श्रेणी के कार्य किया करते १. पोएण बवहरते पिहुंड नगरमागए ।
तं ससत्तं पइगिज्झ सदेसमह पत्थिओ ।।
-उ० २१.२-३. तथा देखिए-उ० ३५.१४. २. बावत्तरीकलाओ य सिक्खिए नीइकोविए ।
-उ० २१.६. ३. देखिए-पृ० ३९६, पा० टि० २. ४. देखिए-परिशिष्ट २. ५. जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे सुरक्खिए । नाणाधन्नपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए ॥
-उ० ११.२६. ६. कोसंबी नाम नयरी"""पभूयधणसंचओ।
-उ० २०.१८. ७. तस्स रूववइं भज्जं पिया आणे इ रूविणीं। पासाए कोलए रम्मे देवो दोगुंदगो जहा ॥
-उ० २१.७.
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