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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [३६३ उत्तराध्ययन में ब्राह्मण आदि चारों वर्णों व कुछ प्रमुख जातियों की स्थिति का चित्रण इस प्रकार मिलता है :
ब्राह्मण-सामान्य रूप से जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों में ब्राह्मण को क्षत्रिय की अपेक्षा हीन बतलाया गया है। संभवतः इसीलिए सभी जैन तीर्थङ्करों को क्षत्रिय कुल में उत्पन्न बतलाया गया है । भगवान् महावीर जो कि पहले ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित हुए थे बाद में इन्द्र ने उन्हें क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में परिवर्तित कर दिया।' परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में ब्राह्मण को कहीं भी क्षत्रिय से निम्न श्रेणी का नहीं बतलाया गया है अपितु सर्वत्र ब्राह्मणों के प्रभुत्व को ही स्वीकार किया गया है। इसीलिए ग्रन्थ में ब्राह्मण को सदाचार-परायण, वेदविद् ज्योतिषाङ्गविद्, स्व-पर का कल्याणकर्ता तथा पुण्यक्षेत्री कहा गया है। यहाँ इतना विशेष है कि ग्रन्थ में सच्चे ब्राह्मण का लक्षण बतलाते हुए जैन साधु के सामान्य सदाचार को ही प्रकट किया गया है। जैसे :3
'जो पापरहित होने से संसार में अग्नि की तरह पूजनीय, श्रेष्ठ पुरुषों ( कुशलों ) द्वारा प्रशंसित, स्वजनों में आसक्ति से रहित, ... प्रव्रज्या लेकर शोक न करने वाला, आर्यवचनों में रमण करने
१. जै० भा० स०, पृ० २२४, २. जे य वेयविऊ विप्पा जन्नट्ठा य जे दिया।
जोइसंगविऊ जे य जे य धम्माण पारगा॥ जे समत्था समुद्धत्तं परमप्पाणमेव य ।। तेसि अन्नमिणं देयं भो भिक्खू सव्वकामियं ॥
-उ० २५.७-८. जे माहणा जाइ विज्जोववेया ताई तु खेत्ताई सुपेसलाई।
-उ० १२.१३. तथा देखिए-उ० १२.१४-१५; २५.३५,३८. ३. जहित्ता पुव्वसंजोग नाइसंगे य बंधवे । जो न सज्जइ भोगेसु तं वयं बूम माहणं ।।
___-उ० २५.२६. तथा देखिए-उ० २५.१६-२८,३४.
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