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________________ ३८६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन पाशों को छेद करके और उपायपूर्वक विनष्ट करके मुक्तपाश एवं लघुभूत होकर विहार करता हूँ।' केशिमुनि के द्वारा पुनः उन पाशों के विषय में पूछने पर गौतम मुनि कहते हैं-'अत्यन्त भयंकर राग द्वेषादिरूप स्नेहपाशों का विधिपूर्वक छेदन करके यथाक्रम से विहार करता हूँ।'' यहाँ पर संसार के सभी जीवों को पाशबद्ध न कहकर बहुत से जीवों को पाशबद्ध कहना तथा गौतम मुनि को 'मुक्तपाश' एवं 'लघभूत' कहना यह सिद्ध करता है कि संसार में कुछ ऐसे भी जीव हैं जो बन्धन से रहित ( पाशमुक्त ) हैं जिनमें एक गौतम मुनि भी हैं। अतः जो पाशमुक्त एवं कर्मरज के हट जाने से लघभत हैं वे सभी 'जीवन्मक्त' हैं। रागद्वेषवश विषयभोगों के प्रति की गई आसक्ति ( स्नेह या मोह ) ही पाश है और जो रागद्वेष से रहित होकर वीतरागी हैं वे सभी मक्तपाश हैं । ब्राह्मण का लक्षण बतलाते हुए ग्रन्थ में ब्राह्मण को 'प्राप्तनिर्वाण' ( जिसने निर्वाण को प्राप्त कर लिया है ) कहा गया है। इससे भी ‘जीवन्मुक्त' का ग्रहण होता है। ___ इस तरह सिद्ध है कि ग्रन्थ में जीवन्मुक्तों की सत्ता में विश्वास है। ये जीवन्मक्त जल से भिन्न कमल की तरह संसार में रहकरके भी उससे अलिप्त रहते हैं। ये जीवन्मक्त जीव ही प्राणिमात्र के लिए हितोपदेष्टा हैं क्योंकि विदेहम क्त ( सिद्ध ) जीवों की संसार में स्थिति न होने से तथा सभी प्रकार की इच्छाओं से रहित होने से वे हितोपदेष्टा नहीं होते हैं अपितु वे अपने पहले किए गए शुभ-कार्यों से ही जीवों के पथ-प्रदर्शक होते हैं । इस तरह प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हितोपदेश देने के कारण जीवन्मक्तों को जैनग्रन्थों में सिद्धों की अपेक्षा पहले नमस्कार किया जाता है । १. दीसंति बहवे लोए पासबद्धा सरीरिणो..... " मुक्कपासो लहब्भूओ॥ -उ० २३.४०, तथा देखिए-उ० २३.४१-४३. २. सुव्वयं पत्तनिव्वाणं तं वयं बूम माहणं । -उ० २५.२२. ३. णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व-साहूणं ॥ १।। -षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ० ६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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