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३६२] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन इसकी प्राप्ति विषयादि से विरक्त समाधिस्थ विद्वानों को इच्छापूर्वक ( सकाम ) होती है तथा ये मृत्युसमय भी अन्य समयों की तरह प्रसन्न ही रहते हैं।' रोगादि या अन्य कोई उपसर्ग ( आपत्ति ) आ जाने पर ये न तो अपने कर्त्तव्यपथ से विचलित होते हैं और न किसी प्रकार के कष्ट से दुःखी होते हैं। इस तरह पण्डितमरण (सल्लेखना ) का अर्थ है- मृत्यु को सन्निकट आया हुआ जानकर प्रसन्नतापूर्वक सब प्रकार के आहार का त्याग करके आत्मा का ध्यान करते हुए मृत्यु का स्वागत करना । यह पण्डितमरण यावत्कालिक अनशन तपपूर्वक होता है ।
समाधिमरण आत्महनन नहीं :
इस प्रकार के मरण को आत्म-हनन नहीं कह सकते हैं क्योंकि यह मृत्यु या अन्य कोई दुःसाध्य आपत्ति आ जाने पर प्रसन्नतापूर्वक शरीरत्याग करने की प्रक्रिया है। यह एक प्रकार का शुभ-ध्यान (धर्म या शुक्लध्यान) है। यदि प्रसन्नतापूर्वक मृत्यु का स्वागत नहीं किया जाएगा तो मृत्यु से भय बना रहेगा जिससे अशुभ-ध्यान (आर्त एवं रौद्र ध्यान) की प्राप्ति होगी जो दुर्गति का कारण है। अतः साधु के आहार न करने के कारणों में एक कारण सल्लेखना भी गिनाया गया है। साधु एवं गृहस्थ दोनों को इस प्रकार का मरण स्वीकार करने के लिए कहा गया है। यदि भय व दुःख आदि से प्रेरित होकर आहारत्याग किया जाएगा तो वह समाधिमरण (सल्लेखना) न होकर आत्म-हनन होगा। १. मरणंपि सपुण्णाणं...."विप्पसण्णमणाधायं ।
-उ० ५.१८. न संतसंति मरणंते सीलवंता बहुस्सुया ।
-उ० ५.२६. तथा देखिए-उ० ५.३१. २. न इमं सव्वेसु भिक्खूसु न इमं सव्वेसु गारिसु ।
-उ० ५.१६. .
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