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प्रकरण ५ : विशेष साध्वाचार
[ ३६१ प्रतिमाएँ वस्तुतः अनशन तप के अभ्यास के लिए प्रकार-विशेष हैं। व्यवहारसूत्र में अन्य प्रकार से भी साधु की प्रतिमाओं का उल्लेख मिलता है। परन्तु सबका तात्पर्य एक ही है-अनशन तप का अभ्यास । दिगम्बर-परम्परा में साधु की प्रतिमाओं का वर्णन नहीं मिलता है। इस तरह ये साधु की प्रतिमाएँ गृहस्थ की ११ प्रतिमाओं से भिन्न हैं। इन प्रतिमाओं का पालन करते समय क्षुधादि परीषहों को भी सहन करना पड़ता है।
समाधिमरण-सल्लेखना समाधिमरण ( सल्लेखना ) का अर्थ है-मृत्यु के सन्निकट आ जाने पर चारों प्रकार के आहार का त्याग करके आत्मध्यान करते हए प्रसन्नतापूर्वक प्राणों का त्याग करना। इसे ग्रन्थ में 'पण्डितमरण' एवं 'सकाममरण' शब्द से भी कहा गया है। क्योंकि
पांच दत्तियाँ लेना, ६. षट्मासिकी-छः मास तक छः दत्तियां लेना, ७. सप्तमासिकी-सात मास तक सात दत्तियां लेना, ८. प्रथम सप्त अहोरात्रिकी-सात दिनरातपर्यन्त निर्जल-उपवास (चतुर्थभक्त) करते हुए ध्यान करना, ६. द्वितीय सप्त अहोरात्रिकी-सात दिनरात तक किसी अन्य आसन-विशेष से ध्यान करना, १०. तृतीय सप्त अहोरात्रिकी-सात दिन-रात तक अन्य किसी आसन-विशेष से ध्यान करना, ११. अहोरात्रिकी-निर्जल दो उपवास (षष्ठभक्त) करना, और १२. रात्रिकी-एक रात्रिपर्यन्त निर्जल उपवास (अष्टभक्त) करना।
यहाँ दत्ति शब्द का अर्थ है-एक ही समय में लगातार बिना धारा टूटे जितना आहार अथवा पानी साधु के पात्र में डाल दिया जाता है उसे एक दत्ति कहते हैं।
-उ० ३१.११ (टीकाएँ); दशाश्रुतस्कन्ध, उद्देश ७. १. व्यवहारसूत्र, उद्देश १०. २. इत्तो सकाममरणं पंडियाणं सुणेह मे।
-उ० ५.१७. तथा देखिए-उ० ५.२; ३५.२० ; ३६.२५१-२५२,२६३ आदि ।
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