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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार
[ ३१५ इस तरह साधु इन ६ परिस्थितियों के मौजूद रहने पर ही आहार ग्रहण करे। इन सबके मूल में संयम का पालन करना प्रधान कारण है क्योंकि संयम का पालन न करने पर वैयावत्य, ईर्यासमिति एवं धर्मचिन्तन भी नहीं हो सकता है। प्राणरक्षा एवं क्षधा-वेदना की शान्ति भी संयम की रक्षा के लिए ही है। इसका स्पष्टीकरण आहार न करने के निम्नोक्त कारणों से हो जाता है ।
किन परिस्थितियों में आहार ग्रहण न करे :
उपयुक्त छहों कारणों के वर्तमान रहने पर भी यदि निम्नोक्त छ : कारणों में से कोई भी एक कारण उपस्थित हो तो साधु को आहार त्याग देना चाहिए और जब तक आहार न करने का कारण दूर न हो जाए तब तक किसी भी हालत में आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए, भले ही प्राणों का त्याग क्यों न करना पड़े । आहार न करने के वे छः कारण निम्नोक्त हैं : १
१. भयङ्कर रोग हो जाने पर- असाध्य रोग के हो जाने पर आहार यांग देना चाहिए। जब साधु को रोगादि की शान्ति के लिए औषधिसेवन का भी निषेध है तो फिर ऐसी परिस्थिति में आहार ग्रहण करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है ? । २. आकस्मिक संकट (उपसर्ग) आ जाने पर-किसी आकस्मिक विकट संकट के उपस्थित हो जाने पर साधु को सब प्रकार के आहार का त्याग कर देना चाहिए ।
३. ब्रह्मचर्यव्रत की रक्षा के लिए-यदि भोजन से इन्द्रियाँ प्रदीप्त होकर कामवासना की ओर झुकती हैं तो भोजन का त्याग कर देना चाहिए। यहां ब्रह्मचर्य की रक्षा से संयम की रक्षा अभिप्रेत है क्योंकि आत्मसंयम के अभाव में ही ब्रह्मचर्य से पतन सम्भव है। १. आयंके उव सग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहे उं सरीरवोच्छेय गट्ठाए ।
-उ० २६.३५. २. उ० १६.७६-७७; १५.८.
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