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________________ ३१२] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ३. जहाँ जीवादि के उत्पन्न होने की संभावना न हो-यदि वहाँ क्षद्र जीवों के उत्पन्न होने की संभावना होगी तो अहिंसा महाव्रत का पालन करने में बाधा पड़ेगी। अतः जहाँ क्षद्र जीवों के उत्पन्न होने की संभावना न हो वही स्थान साधु के ठहरने के उपयुक्त है।' ४. जो गोबर आदि से उपलिप्त न हो तथा बीजादि से रहित हो-साध के निमित्त से उस स्थान को लीप-पोतकर साफ न किया गया हो तथा अंकुरोत्पादक बीजों से आकीर्ण भी न हो । इससे भिन्न उपाश्रय में ठहरने से साधु हिंसा के दोषों का भागी होता है । अतः जिस उपाश्रय को साधु के निमित्त से लीप-पोतकर साफ न किया गया हो ऐसे ही उपाश्रय में साधु ठहरे ।२ इसका यह तात्पर्य नहीं है कि वह स्थान गन्दा हो अपितु वह साफ-सुथरा तो हो परन्तु साधु के निमित्त से उसे साफ न किया गया हो। ५. जो एकान्त हो-जो नगर एवं गृहस्थादि के घनिष्ठ सम्पर्क से रहित श्मशान, उद्यान, शून्यगृह, वृक्ष, लतामण्डप का तलभाग आदि एकान्तस्थल हो । साध्वियों के विषय में बृहत्कल्प के द्वितीय उद्देश में लिखा है कि साध्वियां धर्मशाला ( आगमनगृह ), टूटा-फूटा मकान ( विकृति-गृह ), वृक्षमूल और खुले आकाश ( अभ्रावकाश ) में न रहें। इसका कारण यह है कि ऐसे एकान्त स्थानों पर साध्वियों के साथ पुरुषों के द्वारा बलात्कार की संभावना रहती है। ६. जो परकृत हो-जो उपाश्रय साधु के निमित्त से बनाया गया न हो । अर्थात् जिसे गृहस्थ ने स्वयं के उपयोग के लिये १. वही तथा पृ० ३१०, पा० टि० २. २. विवित्तलयणाई भइज्जताई निरोवलेवाइं असंथडाइं । -उ० २१.२२. ३. सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व इक्कओ। पइरिक्के परकडे वा वासं तत्थाभिरोयए । -उ० ३५.६. तथा देखिए-उ० २.२०,१८.४-५; २०.४; २३.४,२५.३. ४. वही। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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