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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वाचार
जाता है ।' जिनभद्र ने सामायिक को चौदह पूर्वो (जिनवाणी) का सार बतलाया है।२ ।
२. चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक-जैनधर्म के प्रवर्तक चौबीस तीर्थङ्करों एवं सिद्धों की स्तुति करना चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक है। इससे जीव दर्शन की विशुद्धि करता है। इस आवश्यक में जो जैन तीर्थङ्करों की स्तुति का विधान किया गया है उसका कारण यह है कि उनके गुणों का चिन्तन करके अपनी अन्तश्चेतना को जाग्रत करना चाहिए क्योंकि जैन तीर्थङ्कर वीतराग होने के कारण उपासक का किसी प्रकार का उपकार नहीं करते हैं। .
३. वन्दन आवश्यक-गुरु का अभिवादन करना वन्दन आवश्यक है। यदि गुरु उपस्थित न हो तो उनका मन में संकल्प करके अभिवादन कर लेना चाहिए। ग्रन्थ में प्रत्येक 'आवश्यक' के पहले और बाद में गुरु की वन्दना अवश्यकरणीय बतलाई गई है।४ इस वन्दन आवश्यक का फल बतलाते हुए लिखा है-'गुरु-वन्दना से जीव नीचगोत्र कर्म का क्षय करके उच्चगोत्र कर्म का बन्ध करता है और अप्रतिहत सौभाग्यवाला तथा सफल आज्ञावाला होता हुआ सर्वत्र आदर प्राप्त करता है ।
१. सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणयइ ।
-उ० २६.८. २. सामाइयं संखेवो चोदसपुत्वपिंडोत्ति ।
-विशेषावश्यकभाष्य, गाथा २७६६. ३. चउव्वीसत्थएणं दंसणविसोहि जणयइ ।
-उ० २६.६. .. तथा देखिए-आवश्यकनियुक्ति, गाथा १०७६.
थयथुइमंगलेण नाणदसणचरित्त बोहिलाभं जणयह ।" "यणं जीवे अंतकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं आराहणं आराहेइ।
-उ० २६.१४. ४. देखिए-सामाचारी। ५. वंदणएणं नीयागोयं कम्म खवेइ । उच्चागोयं कम्म निबंधइ । सोहग्गं च णं अपडिहयं आणाफलं निव्वत्तेइ । दाहिणभावं च णं जणयइ ।
-उ० २६.१०.
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