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. २८८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन एवं सत्यासत्य से रहित मन के विचारों को रोकना )।' मन को एकाग्र करना ( एकाग्रमनःसन्निवेश) और मन को समाधिस्थ करना ( मनःसमाधारण ) ये दोनों मनोगप्ति के ही प्रतिफल हैं। एकाग्रमनःसन्निवेश आदि से ध्यान तप में सहायता मिलती है।
२. वचनगुप्ति-संरम्भ, समारम्भ एवं आरम्भ में प्रवृत्त हुए वचन के व्यापार को रोकना वचनगुप्ति है।३ वचन के सत्यादि चार प्रकार संभव होने से मनोगप्ति की तरह इसके भी चार भेद बतलाए गए हैं। इनके क्रमशः नाम ये हैं :४ १. सत्यवाग्गुप्ति, २. मृषावाग्गुप्ति, ३. सत्यमृषावाग्गप्ति (मिथ) और ४. असत्यमृषावाग्गुप्ति। यह वचनगुप्ति विशेषकर सत्य महाव्रत की रक्षा करती है। वाक्समाधारण (वाणी को समाधिस्थ करना) वचनगुप्ति का ही प्रतिफल है ।
३. कायगुप्ति-खड़े होने में, बैठने में, शयन करने में, त्वक्परिवर्तन में, लांघने में, प्रलंघन करने में, इन्द्रियों का विषय के साथ संयोग करने आदि में जो शरीर की प्रवृत्ति संरम्भ, समारम्भ एवं आरम्भरूप होती है उसे रोकना कायगुप्ति है अर्थात् शरीरसम्बन्धी व्यापार को रोकना कायमूप्ति है। कायसमाधारण कायगुप्ति का प्रतिफल है । इससे कायोत्सर्ग (शरीर का ममत्व छोड़कर 1. First three refer to assertions and fourth to injunctions.
-से० बु० ई०, भाग-४५, पृ० १५०. २. उ० २६.२५-२६,५६,६२-६६. ३. देखिए - पृ० २६५, पा० टि० २. ४. सच्चा तहेव मोसा य""वइगुत्ती चउव्विहा ।
-उ० २४.२२. ५. उ०२६.५७. ६. ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे ।
कायं पवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जइ ।।
--उ० २४.२४-२५,
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