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२८६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन निवृत्ति स्वतः हो जाती है । अतः ग्रन्थ में प्रवचनमाता को 'समिति' शब्द से भी कहा गया है।'
गप्ति और समिति के प्रमुख आठ भेद होने से प्रवचनमाताओं की भी संख्या आठ मानी गई है। ग्रन्थ में इनके विषय में सावधान रहने का उपदेश दिया गया है तथा इनके सम्यक् प्रकार से पालन करने का फल संसार से शीघ्र मुक्ति बतलाया गया है ।
अब क्रमशः गुप्तियों और समितियों का पृथक-पृथक् विचार किया जाएगा। गुप्तियाँ-प्रवृत्ति-निरोध : __ मन, वचन और काय-सम्बन्धी अशुभ-प्रवृत्तिनिरोधरूप जो गुप्ति का लक्षण बतलाया गया है उसमें अशुभ-प्रवृत्ति से तात्पर्य सांसारिक विषय-भोगों की ओर उन्मुख होनेवाली प्रवृत्ति से है। कषायरूपी शत्रु के आक्रमण से रक्षा करने के लिए इन गुप्तियों को अमोघशस्त्र (अजेयशस्त्र) कहा गया है। प्रवृत्ति मन, वचन एवं काय से संभव होने से गुप्ति के भी तीन भेद किए गए
१. वही।
यत्तु भेदेनोपादानं तत् समितीनां प्रविचाररूपत्वेन गुप्तीनां तु प्रवीचाराऽप्रवीचारात्मकत्वेन कथञ्चित् भेदख्यापनार्थम् ।......सर्वा अप्यमूश्चारित्ररूपाः, ज्ञानदर्शनाऽविनाभावि च चारित्रम्, न चैतत्व्यातिरिक्तमन्यदर्थतो द्वादशाङ्गमित्येतासु प्रवचनं मातमुच्यते ।
-उ० ने० वृ०, पृ० ३०२. २. वही। ३. अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते।
-उ० २६. ११. एयाओ पवयणमाया जे सम्म आयरे मुणी। सो खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ।
--उ० २४.२७. ४. सद्धं नगरं किच्चा तवसंवरमगलं । खंति निउणपागारं तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥
-उ०६.२०.
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