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________________ २६०] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन हैं : १. पादपोंछन' ( पैर साफ करने का वस्त्रखण्ड ) और २. पात्र व कम्बल। इन दोनों अर्थों में प्रथम अर्थ (पादपोंछन) अधिक उपयुक्त मालूम पड़ता है क्योंकि ग्रन्थ में कहा है कि जो साध पादकम्बल को ठीक से साफ किए बिना उस पर बैठ जाता है वह पापश्रमण है। विशेष उपकरण : जो उपकरण उपयोग करने के बाद गृहस्थ को वापिस लौटा दिए जाते हैं या जो अवसरविशेष होने पर कुछ समय के लिए ग्रहण किए जाते हैं वे विशेष उपकरण (औपग्रहिकोपधि) कहलाते हैं। जैसे :: १ पीठ-बैठने के लिए लकड़ी की चौकी। २. फलक-सोने के लिए लकड़ी का पाटा। ३. शय्या-ठहरने का स्थान ( उपाश्रय )। ४. संस्तारक- घास, तृण आदिका बनाया गया आसन (विस्तर)। इस तरह साघु के इन सभी उपकरणों में मुखवस्त्रिका, रजोहरण आदि आवश्यक उपकरण हैं और पीठ, फलक आदि विशेष । आगम-ग्रन्थों में स्त्रियों के लिए कुछ अधिक उपकरण रखने की अनुमति है।' ये उपकरण संयम में सहायक होने के कारण ही आवश्यक हैं। इनसे साधु की पहचान भी होती है। पाँच महाव्रत साध दीक्षा लेने के बाद सर्वप्रथम पाँच नैतिक महाव्रतों को धारण करता है। ये महाव्रत साधु के सम्पूर्ण आचार के आधारस्तम्भ हैं। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं :६ १. डा० मोहनलाल मेहता ने पादपोंछन का अर्थ रजोहरण किया है। -देखिए, जैन आचार, पृ० १६५ २. देखिए-पृ० २५६, पा० टि० ४. ३. वही; उ० २५.३. ४. जै० सा० बृ० इ०, भाग-२, पृ. २०६. ५. देखिए-पृ० २५६, पा० टि० २. ६. अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंचमहन्वयाणि चरिज्ज धम्म जिणदेसियं विऊ ।। -उ० २१.१२. तथा देखिए-उ० १.४७; १२.४१ ; १६.११,८६; २०.३६; ३१.७. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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