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प्रास्ताविक
जॅन आगमों में उत्तराध्ययन सूत्र
उत्तराध्ययन सूत्र अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध एक जैन आगम ग्रन्थ है । भगवान् महावीर ( ई० पू० ६ ठी शताब्दी ) के जिन उपदेशों को उनके शिष्यों ने सूत्रग्रन्थों के रूप में निबद्ध किया वे ग्रन्थ 'आगम' या 'श्रुत' के नाम से प्रसिद्ध हैं । ' इन ग्रन्थों में जो भगवान् महावीर के साक्षात् प्रधान शिष्यों ( गणधरों) द्वारा रचित हैं वे अंगप्रविष्ट ( अंग ) कहलाते हैं और शेष जो उत्तरवर्ती श्रुतज्ञ शिष्यों द्वारा रचित हैं वे अंगबाह्य ( अनंग ) । २ इनमें साक्षात् महावीर के शिष्यों द्वारा रचित होने के कारण अंग ग्रन्थों की प्रधानता है । इन्हें बौद्ध त्रिपिटक की तरह 'गणिपिटक ' ' तथा ब्राह्मणों के प्राचीनतम ग्रन्थ वेदों की तरह 'वेद' कहा गया है। इनकी संख्या १२ नियत होने से
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१. प्राचीन काल में इसे 'श्रुत' कहते थे और श्रुतज्ञानी को 'श्रुतकेवली' | वर्तमान में आगम शब्द अधिक प्रचलित है । देखिए, जै० सा० बृ० इ०, भाग १, प्रस्तावना, पृ० ३१.
२. तं जहा - अंगपविट्ठ, अंगबाहिरं च । से किं तं अंगबाहिरं ?
गहिरं विहं पण्णत्तं । तं जहा - आवस्सयं च आवस्यवइरित्तं च । - नंदी, सूत्र ४३;
यद् गणधर शिष्यप्रशिष्यैरारातीयै रधिगतश्रुतार्थतत्त्वः कालदोषादल्पमेधायुर्बलानां प्राणिनामनुग्रहार्थमुपनिबद्धं संक्षिप्ताङ्गार्थवचन विन्यासं
तदङ्गबाह्यम्
तत्वार्थ वार्तिक १.२०.१३.
३. दुवाल संगे गणिपिडगे
४. दुवालसंगं वा प्रवचनं वेदो
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- समवा०, सूत्र ९ तथा १३६.
- प्रा० सा० इ०, पृ० ४४.
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