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________________ प्रकरण ३ : रत्नत्रय [२३७ प्रतिमाएँ गिनाई गई हैं । यद्यपि उनके क्रम, नाम एवं अर्थ में थोड़ा अन्तर पाया जाता है। परन्तु दोनों का उद्देश्य एक है -आत्मविकास करते हुए सर्वविरतिरूप साध्वाचार की अवस्था को प्राप्त करना। __गृहस्थाचार पालन करने का फल-इस प्रकार के गृहस्थधर्म का पालन करने वाला व्यक्ति जिस फल को प्राप्त करता है वह उसके आत्मविकास की हीनाधिकता पर निर्भर करता है। अतः ग्रन्थ में कहा है कि जो गृहस्थधर्म का पालन करता है वह मनुष्य रिक्त शेष सात व्रत अहिंसादिव्रतों की रक्षा के लिए हैं जो ‘गुणवत' एवं 'शिक्षावत' के नाम से कहे जाते हैं। ये बारह व्रत आगे की प्रतिमाओं की दढ़ता में सहायक-कारण होते हैं, . ३. सामायिकसामायिकव्रत का दृढ़ता से पालन करना, ४. प्रोषध-प्रोषधव्रत का दृढ़ता से पालन करना, ५. नियम-रात्रिभोजन-त्याग आदि नियम-विशेष लेना, ६. ब्रह्मचर्य-पूर्ण-ब्रह्मचर्य का पालन करना, ७. सचितविरत-कन्दमूल, आदि हरी वनस्पतियों का त्याग करना, ८. आरम्भविरत-जिसमें जीवों की हिंसा हो ऐसी सावध (पापात्मक) क्रियाओं को स्वयं न करना, ६. प्रेष्यारम्भविरतदूसरों को भी गृहस्थीसम्बन्धी सावधक्रियाएँ करने के लिए प्रेरित न करना, १०. उद्दिष्ट भक्तविरत-स्वयं के उद्देश्य से बनाए गए भोजनादि को न खाना अथवा गृहस्थी के कार्यों की अनुमोदना न करना और ११. श्रमणभूत-जैन साधु की तरह आचरण करना। इस प्रतिमाधारी गृहस्थ और साधु में यह अन्तर है कि इस प्रतिमा का धारी स्व-कुटुम्बी जनों के यहाँ से ही आहारादि लेता है जबकि साधु स्व-कुटुम्ब से पूर्ण ममत्व छोड़कर सर्वत्र विचरण करता हुआ सब जगह से आहार लेता है। देखिए-दशाश्रुतस्कन्ध, दशा ६-७; समवा०, समवाय ११; उपासकदशाङ्ग, पृ० ११५-१२२; जैन-योग (आर० विलियम्स), पृ० ५०-५१,५६. १. दिगम्बर-परम्परा में गृहस्थ की ग्यारह प्रतिमाएं क्रमशः इस प्रकार हैं: दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तविरत, रात्रिभोजन-विरत, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रह-विरत, अनुमतिविरत तथा उद्दिष्ट-विरत । देखिए-जैनआचार, डा. मोहनलाल मेहता, पृ० १३०. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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