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२२० ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन - तोड़ देता है और अपने मालिक ( गाड़ीवान ) को भी पीड़ित करता है वैसे ही अविनीत शिष्य गुरु के द्वारा संयम में प्रवत्ति के लिए प्रेरित किए जाने पर नाना प्रकार की कुचेष्टाएँ करते हुए गुरु को पीड़ित करता है,' ७. किसी कार्य के लिए आज्ञा देने पर नाना प्रकार के बहाने बनाना, जैसे-अमुक गहस्थ या गृहिणी मुझे पहचानती नहीं, वह मुझे अन्नादि नहीं देगी, वह घर पर नहीं होगी, वहां जाना बेकार है, यदि भेजना ही है तो किसी दूसरे को भेज दो, यदि किसी तरह जाना भी तो इधर-उधर घमकर वापिस आ जाना और पूछने पर बहाने बनाना अथवा राजाज्ञा की तरह अनिच्छापूर्वक म्रकूटि चढ़ाकर कार्य करना,२ ८. स्वादिष्ट अन्न को छोड़कर विष्टा को खाने वाले शूकर की तरह सदाचार को छोड़कर स्वच्छन्द विचरण में आनन्द मनाना' और ६. तैतीस प्रकार की अविनयभूत अनुशासनहीनताओं (आशातनाओं ) का आचरण करना ।
१. उ० २७.४.८; १.१२. २. न सा ममं वियाणाइ न वि सा मज्झ दाहिई।
निगाया होहिई मन्ने साह अन्नोत्थ वज्ज उ ।। पेसिया पलिउंचंति ते परियंति समंतओ। रायवेटिं च मन्नंता करेंति भिउडि मुहे ॥
. -उ० २७.१२-१३. तथा देखिए-उ० २७.१४. ३. कणकुण्डगं चइत्ताणं विट्ठ भुंजइ सूयरे । एवं सीलं चइत्ताण दुस्सीले रमई मिए ।
-उ० १.५. ४. तैतीस प्रकार की आशातनाएँ (अयं सम्यक्त्व लाभं शातयति विनाश
यति इत्याशातना) इस प्रकार हैं : १. गुरु के आगे-आगे चलना, २. गुरु की बराबरी से चलना, ३. गुरु के पीछे अविनयपूर्वक चलना, ४-६. चलने की तरह बैठने व खड़े होने से सम्बन्धित तीनतीन आशातनाएं, १०. यदि गुरु व शिष्य एक ही पात्र में जल लेकर कहीं बाहर गए हुए हों तो गुरु से पहले उस पात्र में से जल लेकर
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