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प्रकरण २ : संसार
[ १७१ जीव का परलोक-गमन होता है।' जीव के परलोक-गमन के एक अन्तर्मुहर्त पहले लेश्या की उपस्थिति होने के कारण ही कृष्ण और शुक्ल लेश्या की उत्कृष्ट-स्थिति जीव की सामान्य उत्कृष्ट आयु से एक मुहर्त अधिक (एक मुहर्त अधिक ३३ सागर) बतलाई गई है ।२ कौन लेश्या किस जीव में कितने समय तक रहती है यह जीव की आयू पर निर्भर करता है । अतः ग्रन्थ में चारों गतियों के जीवों की लेश्याओं की जो आयु बतलाई है वह जीवों की आयु के आधार से बतलाई गई है। मनुष्य और तिर्यञ्च गति के जीवों में छहों लेश्याएँ संभव हैं। उनमें प्रथम पाँच की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त का अर्ध-भाग है। इसके अतिरिक्त शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति अर्धमूहर्त है और उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम एक करोड़ पूर्व है।
नारकी जीवों में प्रथम तीन लेश्याएँ ही होती हैं। प्रथम तीन नरकों में कापोतलेश्या, तीसरे से पाँचवें में नीललेश्या और पांचवें से सातवें तक कृष्णलेश्या पाई जाती है। सामान्यतया देवों में
१. लेसाहिं सव्वाहिं पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु ।
न हु कस्सइ उववत्ति परे भवे अस्थि जीवस्स ॥ लेसाहिं सव्वाहिं चरिमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववत्ति परे भवे अत्यि जीवस्स ।। अंतमुहुत्तम्मि गए अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव। ले साहिं परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोयं ।।
-उ० ३४.५८-६०. २. उ० ३४.३४, ३९. ३. उ० ३४.४५, ४६.
शुक्ल-लेश्या की उत्कृष्ट-स्थिति में जो ६ वर्ष कम कर दिया गया है उसका कारण है कि साधु दीक्षा अङ्गीकार करके जब कम से कम एक साल पूर्ण कर लेता है तब इस लेश्या की प्राप्ति संभव है। इसके अतिरिक्त साधु बनने के लिए कम से कम आठ वर्ष की उम्र होना आवश्यक है।
-उ० आ० टी०, पृ० १५६०. ४. उ० ३४.४०-४४.
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