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________________ विलम्ब हआ। इस बीच मैंने अपने प्रबन्ध को यथासंभव पुनः परिमार्जित व परिवधित किया। आज इसे छपे रूप में विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । इस तरह यद्यपि इस प्रबन्ध को सर्वाङ्गीण सुन्दर बनाने का पूर्ण प्रयत्न किया गया है फिर भी मानव की शक्तियां सीमित होने के कारण वह पूर्णता का दावा नहीं कर सकता। यदि इससे पाठकों का थोड़ा-सा भी लाभ हो सका तो मैं अपना परिश्रम सफल समझूगा। ___ अन्त में उन सभी सज्जनों के प्रति आभार प्रकट करना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मुझे प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही साथ मैं उन सभी ग्रन्थों, ग्रन्थकारों व ग्रन्थसम्पादकों आदि का भी आभारी हूँ जिनसे प्रस्तुत प्रबन्ध में सहायता मिली है। सर्वप्रथम में श्रद्धेय पूज्य गुरुवर्य डा० सिद्धेश्वर भट्टाचार्य का आभारी हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय व निर्देशन आदि देकर इस प्रबन्ध को इस रूप में प्रस्तुत करने के योग्य बनाया। इसके बाद पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के अध्यक्ष डा. मोहनलाल मेहता का आभारी हूँ जिन्होंने प्रस्तुत प्रबन्ध के संपादन में बहुमूल्य योगदान दिया। इसके बाद में पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान तथा स्याद्वाद महाविद्यालय व वहां के सभी पदाधिकारियों का आभारी हूँ जहाँ से मुझे प्रबन्ध-लेखन के काल में हर प्रकार की ( आर्थिक, पुस्तकीय व आवासीय ) सुविधाएँ प्राप्त हुई। पं० दलसुख मालवणिया तथा डा० नथमल टाटिया का भी आभारी हूँ जिन्होंने प्रस्तुत प्रबन्ध का परीक्षण करके अपने बहुमूल्य सुझाव दिए। वाराणसी १-८-७० सुदर्शनलाल जैन प्राध्यापक-संस्कृत-पालि विभाग काशी विश्वविद्यालय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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