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प्रकरण २ : संसार
कारणभूत 'कर्ममलों का संचय करते हैं । ऐसी स्थिति में उनकी धन-धान्यादि से सम्पन्न क्षत्रियराजा की तरह भोगों से निवृत्ति नहीं होती है । बारम्बार प्रतिबोधित करने पर भी उनकी प्रवृत्ति उस ओर से उसी प्रकार नहीं मुड़ती है जिस प्रकार कीचड़ में फंसा हुआ हाथी तीर प्रदेश को देखकर भी नहीं निकल पाता है । 3 चित्त-मुनि के द्वारा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बारम्बार प्रतिबोधित किए जाने पर भी विषयों से विरक्त नहीं होता है और अन्त में सातवें नरक में जाता है । इसीलिए ग्रन्थ में संसार को पाशरूप तथा समुद्र की तरह विशाल एवं दुस्तर बतलाया गया है जहां से निकलना बड़ा कठिन है ।
चार दृष्टान्त - विषयासक्त पुरुषों को प्रतिबोधित करने के लिए ग्रन्थ में चार दृष्टान्त दिए गए हैं। वे इस प्रकार हैं :
१. कायसा वयसा मत्ते वित्ते गिद्धे य इत्थिसु ।
दुहुओ मलं संचिणइ सिसुणा गोव्व मट्टियं ॥
२. न निविज्जन्ति संसारे सव्वट्ठे व खत्तिया ।
३. नागो जहा पंक जलावसन्नो दठ्ठे थलं नाभिसमेइ तीरं । —उ० १३.३०.
साहुस तस्स व अकाउं ॥ अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे । अत्तरे सोनर पविट्ठो ॥
तथा देखिए - उ० १३.१४, २७, ३३, १६.२६; ८.६. ४. पंचाल या विय बम्भदत्तो ।
५. पास जाइप बहू |
- उ० १३.३४.
—उ० ५.१०.
- उ० ६.२.
तिण्णो हसि अण्णवं महं ।
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- उ० ३.५.
- उ० १०.३४.
तथा देखिए - उ० ४.७; ५.१; ६.२; ८.१०; १६.११; २१.२४; २२.३९; २३.७३; २५.४०.
६. उ० ७.१-२४.
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