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१२८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन तरह किसी एक ही केन्द्रबिन्दु से' और न सांख्यदर्शन की तरह चेतन-अचेतन इन (प्रकृति-पुरुषरूप) दो केन्द्रबिन्दुओं से प्रवहमान है अपितु चेतन-अचेतनरूप मुख्य छः केन्द्रबिन्दुओं से प्रवहमान है। द्रव्य वेदान्तियों की तरह न तो सर्वथा नित्य है और न बौद्धों की तरह सर्वथा अनित्य अपितु नित्यानित्यात्मक एवं एकानेकात्मक है। लोक की भौगोलिक रचना के सम्बन्ध में कितनी यथार्थता है, कुछ कहा नहीं जा सकता है।
१. सर्व खल्विदं ब्रह्म।
-छान्दोग्योपनिषद् ३.१४.१. एकमेवाद्वितीयम् ।
-छान्दोग्योपनिषद् ६.२.२.
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