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________________ १२० ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन न किसी के आश्रय से रहते हैं और वे जिसके आश्रय से रहते हैं वही द्रव्य है। इस परिभाषा के अनुसार ग्रन्थ का आशय यह नहीं है कि द्रव्य में सिर्फ गुण ही रहते हैं क्योंकि द्रव्य में पर्याएँ भी रहती हैं। अतः पर्याय का लक्षण करते हुए लिखा है 'जो द्रव्य और गुण दोनों के आश्रय से रहती हों।'' इसी प्रकार ग्रन्थ में विस्ताररुचि-सम्यग्दर्शन के प्रकरण में द्रव्य के सभी भावों को जानने का उल्लेख किया गया है जिसका तात्पर्य है-द्रव्य में रहने वाली समस्त पर्यायों का ज्ञान । तत्त्वार्थसूत्र में भी द्रव्य का लक्षणं गुण-पर्याय . वाला स्वीकार करने से स्पष्ट है कि गुण की तरह पर्याएँ भी द्रव्याश्रित हैं । गुणों की अपेक्षा पर्यायों के विषय में इतनी विशेषता है कि वे द्रव्याश्रित ही हों ऐसी बात नहीं है, अपितु गुणाश्रित भी हैं। गुण एकमात्र द्रव्य के ही आश्रय से रहते हैं। अतः ग्रन्थ में द्रव्य के लक्षण में सिर्फ गुण को ही ग्रहण किया गया है। इस तरह सिद्ध है कि द्रव्य न तो कटस्थ नित्य है और न एकान्ततः अनित्य अपितु गुणों की अपेक्षा से नित्य एवं अपरिवर्तनशील है तथा पर्यायों की अपेक्षा से अनित्य एवं प्रतिक्षण परिवर्तनशील है । गुण : ___ जो एकमात्र द्रव्य के आश्रय से रहते हैं उन्हें गुण कहा गया है। . जैसे-जीव में रहने वाले ज्ञानादि गुण । वैशेषिकदर्शन की तरह गुणों की संख्या न तो नियत है और न द्रव्य से पृथक उनकी सत्ता है। गुणों को केवल द्रव्याश्रित कहने से यह भी सिद्ध है कि गुण स्वतः निर्गुण हैं । अर्थात् गुणों में गुण नहीं रहते हैं। अतः परवर्ती काल में गुणों का लक्षण किया गया है १. लक्खणं पज्जवाणं तु उभओ अस्सिया भवे । -उ०२८.६. २. दव्वाण सव्वभावा। -उ० २८.२४. ३. एगदव्वस्सिया गुणा। -उ० २८.६. ४. रूपरसगन्ध'"""संस्काराश्चतुर्विंशतिर्गुणाः । -तर्क सं०, पृ० ३. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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