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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[ ११७ अवशिष्ट पुण्य-कर्मों के अनुसार मनुष्य-लोक में सांसारिक मनुष्य सम्बन्धी १० प्रकार के ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हैं। इनका ऐश्वर्य
और प्रभाव सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक होता है। इनके ऐश्वर्योपभोग सम्बन्धी १० साधनों के नाम ये हैं : १. क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य, पशु आदि का समूह, २. मित्र, ३. सम्बन्धीजन, ४. उच्चगोत्र, ५. सून्दररूप, ६. निरोगशरीर, ७. महाप्राज्ञ, ८. विनय, ६. यश और १० बल ।' इस तरह ये जीव मनुष्य-लोक में आकर यदि विशुद्ध-आचार का पालन करते हैं तो मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाते हैं। यदि विशुद्ध-आचार का पालन नहीं करते हैं तो संसार-चक्र में भटकते रहते हैं।
जिस प्रकार मनुष्यों और तिर्यञ्चों का विषभक्षण आदि के द्वारा अकालमरण देखा जाता है उस प्रकार देवों का अकालमरण नहीं होता है। ये अपनी पूर्ण आयु का भोग करके ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इनके ऐश्वर्य और आयु के समक्ष मनुष्यों के ऐश्वर्य और आयु कुशा के अग्रभाग में स्थित जलबिन्दु की तरह नगण्य हैं। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा चक्रवर्ती राजाओं का ऐश्वर्य अनन्तगुणा अधिक होता है तथा उनसे भी अनन्तगुणा अधिक ऐश्वर्य देवों का होता है। इनका तेज अनेक सूर्यों से भी अधिक होता है तथा ये इच्छानुकल शरीर धारण करने की सामर्थ्य से युक्त होते हैं। सौधर्म देवलोक से लेकर अनुत्तर
१. तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चया । उवेन्ति माणुसं जोणि स दसंगेऽभिजायए ॥
-उ० ३ १६. ..... तथा देखिए-उ. ३. १७-१८; ७.२७. २. भोच्चा माणस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुचि विसुद्ध सद्धम्मे केवलं बोहि बुज्झिया ।
-उ० ३.१६. ३. देखिए-पृ० १०८, पा० टि० १.
४. विसालिसेहिं सीले हिं जक्खा उत्तर उत्तरा । ... महासुक्का व दिप्पंता मन्नता अपुणच्चयं ।।
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