________________
प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[११५ जीव ही अनुत्तर देवलोक को प्राप्त करते हैं। इनके ऊपर अन्य देवों का निवास नहीं है।
इन २६ प्रकार के वैमानिक देवों में से आदि के सात देवों (सौधर्म से लेकर महाशूक्र तक) की अधिकतम आयु क्रमशः २ सागर, कुछ अधिक २ सागर, ७ सागर, कुछ अधिक ७ सागर, १० सागर, १४ सागर, १७ सागर बतलाई गई है। इसके बाद सहस्रार देव से लेकर नवग्रैवेयक तक क्रमशः १-१ सागर बढ़ते हुए ३१ सांगर तक है। पाँचों प्रकार के अनुत्तरवासी देवों की अधिकतम आयु ३३ सागर है। सौधर्मादि में आदि के पाँच देवों की निम्नतम आय क्रमशः १ पल्योपम, कुछ अधिक एक पल्य, २ सागर, कुछ अधिक २ सागर और ७ सागर है। इसके बाद चार अनुत्तर पर्यन्त पूर्व-पूर्व के देवों की उत्कृष्ट आयु ही आगे-आगे के देवों की निम्नतम आयु बतलाई गई है। सर्वार्थसिद्धि के देवों की अधिकतम और निम्नतम आयु ३३ सागर ही बतलाई गई है।' यद्यपि ग्रन्थ में कहीं-कहीं देवों की आयु अनेकवर्षनयुत'२ तथा १०० दिव्य वर्ष भी बतलाई गई है। परन्तु १. दो चेव सागराइं उक्कोसेण वियाहिया ।
सोहम्मम्मि जहन्नेण एगं च पलिओवमं ।।
अजहन्नमणक्कोसा तेत्तीसं सागरोवमा। महाविमाणे सव्वट्ठे ठिई एसा वियाहिया ॥
-उ० ३६.२२१-२४३. २. अनेकवर्षनयुत-८४ लाख वर्षों का एक 'पूर्वाङ्ग' होता है। एक
पूर्वाङ्ग में ८४ लाख का गुणा करने पर एक 'पूर्व' होता है। एक पूर्व में पुनः ८४ लाख का गुणा करने पर एक 'नयुताङ्ग' होता है । एक नयुताङ्ग में पुनः ८४ लाख का गुणा करने पर एक 'नयुत' होता है । ऐसे असंख्य वर्षों वाले नयुत को 'अनेकवर्षनयुत' कहते हैं।
___--उ० आ० टी०, पृ० २८०. ३. अणेगवासानउया जा सा पण्णावओ ठिई । जाणि जीयन्ति दुम्मेहा ऊणे वाससयाउए ।
- उ०७.१३. अहमासी महापाणे जुइमं वरिसस ओवमे । जा सा पालीमहापाली दिव्वा वरिससओवमा ॥
-उ० १८.२८.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org