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________________ [ १०७ प्रकरण १ : द्रव्य-विचार इस तरह ये सभी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मुख्यतः तीन प्रकार के हैं। इनकी निम्नतम आयु अन्तर्मुहूर्त तथा अधिकतम आयु जलचर की १ करोड़ पूर्व,' स्थलचर की ३ पल्योपम और नभचर की पल्योपम के असंख्येयभाग प्रमाण बतलाई है। इनकी कायस्थिति निम्नतम अन्तर्मुहूर्त तथा अधिकतम क्रमशः पृथक्त्वपूर्वकरोड़, ३ पल्योपम सहित पृथक्कोटि तथा पल्योपम के असंख्येयभाग अधिक पृथक्त्वपूर्वकोटि बतलाई है। शेष क्षेत्र एवं कालसम्बन्धी सभी बातें द्वीन्द्रियादि की तरह हैं।' १. ७०५६००० करोड़ वर्षों का एक 'पूर्व' होता है । दो से लेकर नव तक की संख्या 'पृथक' कहलाती है। अत: 'पृथकपूर्व' का अर्थ हुआ २ से लेकर ६ पूर्व के मध्य की अवधि । २. एगा य पुनकोडीओ उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई जलयराण अंतोमुहुत्तं जहनिया ।। -उ० ३६.१७५. पलिओवमाइं तिनि उ उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई थलयराणं अंतोमुहत्तं जहनिया ॥ -उ० ३६.१८४. पलिओवमस्स भागो असंखेज्जइमो भवे । . आउठिई खहयराणं अंतोमुहुत्त जहन्निया ।। -उ० ३६.१६०. ३. पुव्व कोडिपुहुत्त तु उक्कोसेण वियाहिया । कायठिई जलयराणं अंतोमहुत्त जहन्नयं ।। -उ० ३६.१७६. पलिओवमाइं तिनि उ उक्कोसेण वियाहिया । पुव्व कोडिपुहुत्तण अंतोमुहत्तं जहन्निया । कायठिई थलयराणं । -उ० ३६ १८५. . असंख भागो पलियस्स उक्कोसेण उ साहिया। पुवकोडिपुहुत्तण अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई खहयराणं । - उ० ३६.१६१. ४. उ० ३६.१७३-१७४, १७७-१७८, १५२-१८३, १८६, १८८-१८६, १९२-१९३. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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