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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[१.१ पुद्गल का ही है। पृथिवी आदि में जीवों की सत्ता होने के कारण ही महाभारत में भी संसार को नाना जीवों से भरा हुआ बतलाया गया है। त्रस जीव : __ दो इन्द्रियों से लेकर पाँच इन्द्रियों वाले जीव त्रस कहलाते हैं। इन्हें ही ग्रन्थ में प्रधान-त्रस कहा गया है। इनके प्रथमतः द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय के भेद से चार भेद किये गए हैं। इनमें स्थावर जीवों की तरह सूक्ष्म नाम का भेद नहीं पाया जाता है। द्वीन्द्रियादि जीव आकार में सूक्ष्म (छोटे) हो सकते हैं परन्तु ऐसे सूक्ष्म नहीं हैं जो दीवाल आदि से भी रुकें नहीं । अतः ग्रन्थ में द्वीन्द्रियादि जीवों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से प्रथमतः दो भेद किए गए हैं। परन्तु पञ्चेन्द्रिय जीवों के विषय में इस प्रकार के भेद को बतलाने वाली कोई गाथा नहीं है । द्वीन्द्रियादि त्रस जीवों के भेदादि निम्नोक्त हैं :
१. द्वीन्द्रिय जीव-जो स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों से युक्त हैं वे द्वीन्द्रिय जीव कहलाते हैं। जैसे: कृमि (विष्टा आदि अपवित्र स्थान में उत्पन्न होने वाले), सुमंगल, अलस (यह वर्षाऋतु में पैदा होता है), मातृवाहक (काष्ठ-भक्षक-घुण), वासीमुख, १. उदके बहवः प्राणाः पृथिव्यां च फलेषु च ।
न च कश्चिन्न तान् हन्ति किमन्यत् प्राणयापनात् । सूक्ष्मयोनीनि भूतानि तर्कगम्यानि कानिचित् ॥ पक्ष्मणोऽपि निपातेन येषां स्यात् एकन्धपर्ययः ॥
-महाभारत, शान्तिपर्व, १५.२५-२६. २. देखिए -पृ० ६३, पा०टि० १. ३. बेइंदिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता तेसि भेए सुणेह मे ॥
-उ० ३६.१२७. इसी तरह त्रीन्द्रियादि के लिए देखिए -उ० ३६. १३६, १४५ तथा
. आ० टी०, पृ० १७१७. ... ४. किमिणो सोमंगला चेवणेगहा एवमायओ।
-उ० ३६.१२८-१३०.
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