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प्रकरण १ : द्रव्य- विचार
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इस तरह अग्निकायिक और वायुकायिक के जीवों में स्थावरपने की ही प्रधानता होने से तथा विषय की समानता होने से यहाँ पर एकेन्द्रिय के पाँचों भेदों को दृष्टि में रखकर विचार किया जाएगा :
१ पृथिवीकायिक जीव जिनका पृथिवी ही शरीर है उन्हें पृथिवीकायिक जीव कहते हैं। सूक्ष्म और स्थूल (बादर) के भेद से इनके प्रथमतः दो भेद किए गए हैं फिर इन दोनों के ही पर्याप्तक और अपर्याप्त के भेद से अवान्तर दो-दो भेद किए गए हैं । १ बादर पर्याप्तक को प्रथमतः मृदु ( श्लक्ष्ण) और कठिन ( खर) इन दो भागों में विभक्त किया गया है। इसके बाद मृदु पृथिवी के सात और खर- पृथिवी के छत्तीस प्रकारों को गिनाया गया है ।
(क) मृदु- पृथिवी के सात प्रकार -- काली, नीली, लाल, पीली, श्वेत, पाण्डु (कुछ श्वेत तथा कुछ अन्य रंग वाली भूरी) तथा पनकमृत्तिका ( आकाश में फैलने वाली अत्यन्त सूक्ष्म रज) । इस तरह रंग के आधार पर ये सात प्रकार मृदु- पृथिवी के गिनाए गए हैं ।
(ख) खर- पृथिवी के छत्तीस प्रकार - शुद्ध- पृथिवी ( समूहरूप ), शर्करा, बालुका, उपल, शिला, लवण, क्षार, लोहा, ताम्बा, तरुआ ( त्रपु ), सीसा, रूप्य (चांदी), सुवर्ण, वज्र ( हीरा), हरिताल (पीली और सफेद), हिंगुलुक (शिगरफ), मनःसिल, सासक ( रत्न विशेष ), अंजन ( सुरमा ), प्रवाल, अभ्रपटल (अभ्रक), अभ्रवालुक, गोमेदक,
१. दुविहा पुढवीजीवा य सुहुमा बायरा तहा । पज्जन्तमपज्जत्ता एवमेव दुहा पुणो ||
- उ० ३६.७०.
२ वायरा जे उ पज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोधव्वा सण्हा सत्तविहा तहि ॥
एए खर पुढवीए भैया छत्तीस माहिया गविहमनाणत्ता सुमा तत्थ वियाहिया ||
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- उ० ३६.७१-७७.
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