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प्रकरण १ : द्रव्य-विचार
[८५ उत्तराध्ययन में जीव के सामान्य चेतन गुण के अतिरिक्त कुछ अन्य भी गुण बतलाए हैं जो अजीव से व्यावर्तक तो नहीं हैं परन्तु जीव के स्वरूपाधायक अवश्य हैं । जैसे :
१. जीव अमूर्त है-संसारावस्था में जीव शरीर के सम्बन्ध से यद्यपि मूर्तिक की तरह है परन्तु वास्तव में रूप, रस, गन्ध आदि से रहित होने के कारण उसे अमूर्त स्वभाववाला माना है। अमूर्तस्वभाव होने के कारण ही वह हमारी इन्द्रियों के द्वारा प्रत्यक्ष नहीं देखा जाता है।
२. जीव अविनश्वर है २-जो अमूर्त है उसका शस्त्रादि के द्वारा विनाश संभव न होने से वह अजर-अमर भी है। गीता में भी इसे अजर-अमर कहा गया है।3 ग्रन्थ में इसीलिए नश्वर संसार में जोब को सारवान् वस्तु माना है। अनादि काल से शरीर के साथ सम्बन्ध होने के कारण जीव एक शरीर के नाश होने पर दूसरे शरीर को प्राप्त करता है। अतः शरीर-सम्बन्ध के कारण जीव अनित्य भी है। .
३. जीव स्वदेहपरिमाणवाला है५ -आत्मा स्वतः अमूर्त है परन्तु शरीर के सम्बन्ध से मूर्तिक-सा हो रहा है। अतः जीव में
१. देखिए-पृ० ८३, पा० टि० २ तथा प्रवचनसार २.८०. २. वही। नत्थिजीवस्स नासु त्ति ।
-उ० २.२७. ३. नायं हन्ति न हन्यते ..." न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।
-गीता २.१६-२०. ४. जहा गेहे पलित्तम्मि तस्स गेहस्स जो पइ। ___सारभांडाणि नीणेइ असारं अव उज्झइ ।।
एवं लोए पलित्तम्मि जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि तुब्भेहिं अणमन्निओ।
- उ० १६. २३-२४. ५. उस्से हो जस्स जो होई भवम्मि चरिमम्मि उ। तिभागहीणो तत्तो य सिद्धाणोगाहणा भवे ।।
-उ० ३६.६४.
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