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देशसंयमी- संयतासंयत तिर्यञ्चों के होता है। उत्कृष्ट देशावधिज्ञान संयत जीवों के ही होता है। किन्तु परमावधि और सर्वावधि चरम शरीरी महाव्रती के ही होता है।
पडिवादी देसोही, अप्पडिवादी हवंति सेसा ओ। मिच्छतं अविरमणं, ण य पडिवज्जंति चरमदुगे॥(375)
देशावधिज्ञान प्रतिपाती होता है और परमावधि तथा सर्वावधि अप्रतिपाती होते हैं। परमावधि और सर्वावधि वाले जीव नियम से मिथ्यात्व और अव्रत अवस्था को प्राप्त नहीं होते।
सम्यक्त्व और चारित्र से च्युत होकर मिथ्यात्व और अंसयम की प्राप्ति को प्रतिपात कहते हैं। इस तरह का यह प्रतिपात देशावधि वाले का ही हो सकता है। परमावधि और सर्वावधि वाले का नहीं होता। फलत: ये दोनों अन्तिम अवधिज्ञान अप्रतिपाती ही है और देशावधिज्ञान प्रतिपाती अप्रतिपाती दोनों ही तरह का हैं।
. मनः पर्यय ज्ञान के भेद
__ ऋजुविपुलमतिमन:पर्ययः । (23) Mental knowledge (is of two kinds)ऋजुमति Simple direct knowledge of complex mental things e.g. of what a man is thinking of now along with what he as thought of it in the past and will think of it. ऋजुमति और विपुलमति, मन:पर्ययज्ञान है।
पर मनोगत रूप पदार्थ को जो ज्ञान प्रकाशादि बाह्य अवलम्बन के बिना जाना जाता है उसे मन:पर्ययज्ञान कहते है। इसके 2 भेद हैं। (1) ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान (2) विपुलमति मन:पर्ययज्ञान।
ऋजु का अर्थ है- सरल, सीधा। विपुल का अर्थ है-कुटिल। . . (1) ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान- दूसरे के मनगत सरल वचन, काय और
मनकृत अर्थ को जो मन:पर्ययज्ञान जानता है उसे ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान कहते
सपशाना
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