SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहते है। II] अननुगामी :- जो अवधिज्ञान अपने स्वामी जीव के साथ न जाय उसको अननुगामी कहते हैं। इसके भी तीन भेद है - ( 1 ) क्षेत्राननुगामी (2) भवाननुगामी ( 3 ) उभयाननुगामी । III अवस्थित :- जो सूर्यमण्ड की तरह न घटे न बढ़े उसको अवस्थित कहते हैं । IV अनवस्थित:- जो चन्द्र मण्ड की तरह कभी कम हो कभी अधिक हो उसे अनवस्थित कहते हैं । V वर्धमान :- जो शुक्लपक्ष की चन्द्र की तरह अपने अन्तिम स्थान तक बढ़ता जाये उसको वर्धमान कहते हैं । VI हीयमान :- जो कृष्णपक्ष के चन्द्र की तरह अंतिम स्थान तक घटता जाय उसको मान कहते है । सामान्यतया अवधिज्ञान के जो तीन भेद बताये है, उनमें से केवल गुण प्रत्यय देशावधिज्ञान के ही अनुगामी आदि छह भेद हुआ करते हैं। भव प्रत्यय अवधि नियम से देशावधि ही होती है और परमावधि तथा सर्वावधि नियम से गुणप्रत्यय ही हुआ करते हैं। देशावधिज्ञान भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय दोनों तरह का होता है। भवपच्चइगो ओही, देसोही होदि परमसव्वोही । गुणपच्चइगो णियमा, देसोही वि य गुणे होदि ॥ जीवकाण्ड भाग 2 (373) दर्शनविशुद्धि आदि गुणों के निमित्त से होने वाला गुणप्रत्यय अवधिज्ञान देशावधि परमावधि सर्वावधि इस तरह तीनों प्रकार का होता है । किन्तु भवप्रत्यय अवधिज्ञान नियम से देशावधिरूप ही हुआ करता है। 06 देसोहिस्स य अवरं, णरतिरिये होदि संजदम्हि वरं । परमोही सव्वोही, चरमसरीरस्स Jain Education International जघन्य देशावधिज्ञान संयत तथा असंयत दोनों ही प्रकार के विरदस्य 11 (374) For Personal & Private Use Only मनुष्य तथा www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy