________________
पूर्वगत चौदह प्रकार का है - 1. उत्पादपूर्व, 2. अग्रायणी,3. वीर्यप्रवाद, 4. अस्तिनास्तिप्रवाद, 5. ज्ञानप्रवाद, 6. सत्यप्रवाद, 7. आत्मप्रवाद, 8. कर्मप्रवाद, 9. प्रत्याख्यान, 10. विद्यानुवाद, 11. कल्याणवाद, 12. प्राणावाय, 13. क्रियाविशाल, 14. लोकबिन्दुसार।
___ 1. उत्पादपूर्व :- काल, पुद्गल, जीव आदि की जिस काल में जिस क्षेत्र में जिस पर्याय से उत्पत्ति होती है, उन सबका वर्णन जिसमें है उसको उत्पादपूर्व कहते हैं।
2. अग्रायणी:- जिसमें क्रियावादियों की प्रक्रिया, अग्रणी के समान अंगादि तथा स्वसमय के विषय का विवेचन किया गया है वह अग्रायणी. पूर्व
3. वीर्यप्रवाद :- जिसमें छद्मस्थ और केवलियों की शक्ति; सुरेन्द्र, असुरेन्द्र आदि की ऋद्धि वा नरेन्द्र चक्रवर्ती बलदेव आदि के सामर्थ्य और द्रव्यों के समीचीन लक्षण आदि का वर्णन है वह वीर्यप्रवाद है।
4. अस्तिनास्तिप्रवादः- जिसमें पाँचों अस्तिकायों (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश) का और नयों का अस्ति नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन है, उसको अस्ति-नास्तिप्रवाद कहते हैं। अथवा-जीवादि छह द्रव्यों का उभय नय के द्वारा वशीकृत, अर्पित (विवक्षित), अनर्पित (अविवक्षित) स्व पर पर्याय के कारण भाव (विधि), अभाव (निषेध) से जो वर्णन करता है अर्थात् स्वद्रव्य क्षेत्र काल की अपेक्षा जीवादि अस्तिरुप हैं और पर द्रव्य, क्षेत्र, काल की अपेक्षा नास्ति रुप हैं, इस प्रकार नय विवक्षा से वस्तु के स्वरूप का वर्णन करता है - वह अस्तिनास्ति प्रवाद है।
5. ज्ञानप्रवाद:- जिसमें प्रादुर्भाव विषयों के आयतन स्वरुप ज्ञानियों के पाँच ज्ञानों का और अज्ञानियों के विषयों के आयतन इन्द्रियों का विभाग किया जाता है वह ज्ञानप्रवाद है।
6. सत्यप्रवादः- जिसमे वाग्गुप्ति, वचन संस्कार, के कारण, वचन प्रयोग, बारह प्रकार की भाषा, वक्ता के अनेक प्रकार, मृषाभिधान और दस प्रकार के सत्य के सद्भाव का वर्णन किया जाता है, वह सत्यप्रवाद है।
82
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org