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तथा ग्रहण आदि का वर्णन करती है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-जम्बूद्वीपगत मेरु, कुलाचल, तालाब, क्षेत्र, कुण्ड, वेदिका, वनखण्ड़, व्यन्तरों के आवास, महानदी आदि का वर्णन करती है। द्वीपसागर प्रज्ञप्ति-असंख्यात द्वीपसमुद्रों के स्वरुप, उनमें स्थित ज्योतिषीदेव, व्यन्तरों और भवनवासी देवों के आवासों में वर्तमान अकृत्रिम जिनालयों का वर्णन करती है। व्याख्याप्रज्ञप्ति-रूपी-अरूपी, जीव-अजीव, द्रव्यों का भव्य और अभव्य भेदों का, उनके प्रमाण और लक्षणों का, अनन्तर सिद्ध और परम्परा सिद्धों का तथा अन्य वस्तुओं का वर्णन करती है।
2. सूत्र-:- ‘सूत्रयति' अर्थात् जो मिथ्यादृष्टि दर्शनों को सूचित करता है वह सूत्र है। जीव अबन्धक है, अकार्ता है, निर्गुण है, अभोक्ता है, स्वप्रकाशक नहीं है, पर प्रकाशक है, जीव अस्ति ही है या नास्ति ही है इत्यादि क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानी और वैनयिक मिथ्यादृष्टियों के तीन सौ तिरसठ मतों को पूर्वपक्ष के रूप में कहता है। ___3. प्रथमानुयोग:-प्रथम अर्थात् मिथ्यादृष्टि, अव्रती या अव्युत्पन्न व्यक्ति के लिए जो अनुयोग रचा गया वह प्रथमानुयोग है। यह चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव, नौ प्रतिवासुदेव, इन तिरसठ शलाका प्राचीन पुरुषों का वर्णन करता है।
4. पूर्वगत :- चौदह प्रकार के सम्बन्ध में आगे विस्तार से कहेंगे।
5. चूलिका:- चूलिका भी पाँच प्रकार की है - जलगता चूलिका, स्थलगता, मायागता, आकाशगता, और रूपगता। जलगता चूलिका-जल का स्तम्भन, जल में गमन, अग्नि का स्तम्भन, अग्नि का भक्षण, अग्नि में बैठना, अग्नि में प्रवेश आदि के कारण मन्त्र, तन्त्र, तपश्चरण आदि का वर्णन करती है। मायागत, चूलिका-मायावी रुप, इन्द्रजाल (जादुगरी) विक्रिया के कारण मंत्र, तंत्र तपश्चरण आदि का वर्णन करती है। रूपगता चूलिका-सिंह, हाथी, घोड़ा, मृग, खरगोश, बैल, व्याघ्र आदि के रुप बदलने में कारण मंत्र, तंत्र, तपश्चरण आदि का तथा चित्र, काष्ठ, लेप्य, उत्खनन आदि का लक्षण व धातुवाद, रसवाद, खदान आदि वादों का कथन करती है। आकाशगता चूलिका-आकाश में गमन करने में कारण मंत्र, तंत्र, तपश्चरण का कथन करता है।
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